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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१३

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हुक्म पाकर भैरोंसिंह विदा हुआ और थोड़ी देर तक बातचीत करने के बाद देवीसिंह भी चले गये।

दूसरे दिन मामूली कामों से छुट्टी पाकर राजा वीरेन्द्रसिंह जब दरबार खास में बैठे तो पुनः तारासिंह के विषय में बातचीत शुरू हुई और इसी बीच में नकाबपोशों का भी जिक्र छिड़ा। उस समय वहाँ राजा वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, तेजसिंह तथा देवीसिंह वगैरह अपने ऐयारों के अतिरिक्त कोई गैर आदमी न था। जितने थे सभी ताज्जुब के साथ तारासिंह के विषय में तरह-तरह की बातें कर रहे थे और मौके पर भूतनाथ तथा नकाबपोशों का भी जिक्र आता था। दोनों नकाबपोश वहाँ आ के इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का किस्सा सुना गये थे। उसे आज तीन दिन का जमाना गुजर गया। इस बीच में न तो दोनों नकाबपोश आये और न उनके विषय में कोई बात ही सुनी गई। साथ ही इसके अभी तक भूतनाथ का कोई हाल-चाल मालूम न हुआ। खुलासा यह कि इस समय के दरबार में इन्हीं सब बातों की चर्चा थी और तरह-तरह के खयाल दौड़ाये जा रहे थे। इसी समय चोबदार ने दोनों नकाबपोशों के आने की इत्तिला की। हुक्म पाकर वे दोनों हाजिर हुए और सलाम करके आज्ञानुसार उचित स्थान पर ही बैठ गये।

एक नकाबपोश––(हाथ जोड़ के राजा वीरेन्द्रसिंह से) महाराज ताज्जुब करते होंगे कि ताबेदारों ने हाजिर होने में दो-तीन दिन का नागा किया।

वीरेन्द्रसिंह––बेशक, ऐसा ही है, क्योंकि हम लोग इन्द्रजीत और आनन्द का तिलिस्मी किस्सा सुनने के लिए बेचैन हो रहे थे।

नकाबपोश––ठीक है, हम लोग हाजिर न हुए, इसके भी कई सबब हैं। एक तो इसका पता हम लोगों को लग चुका था कि भूतनाथ जो हम लोगों की फिक्र में गया था, अभी तक लौटकर नहीं आया और इस सबब से कैदियों के मुकदमे में दिलचस्पी नहीं आ सकती थी। दूसरे कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह के किस्से में कई बातें ऐसी थीं जिनका हाल दरियाफ्त करना बहुत जरूरी था और इस काम के लिए हम लोग तिलिस्म के अन्दर गये हुए थे।

वीरेन्द्रसिंह––क्या आप लोग जब चाहे तब उस तिलिस्म के अन्दर जा सकते हैं जिसे वे दोनों लड़के फतह कर रहे हैं?

नकाबपोश––जी, सब जगह तो नहीं। मगर खास-खास ठिकाने कभी-कभी जा सकते हैं जहाँ तक कि हमारे गुरु महाराज जाया करते थे, मगर उसकी खबर एक-एक घड़ी की हम लोगों मिला करती है।

वीरेन्द्रसिंह––आप लोगों के गुरु कौन हैं और कहाँ हैं?

नकाबपोश––अब तो वे परमधाम को चले गये।

वीरेन्द्रसिंह––खैर, तो जब आप लोग तिलिस्म में गये थे तो क्या दोनों लड़कों से मुलाकात हुई थी?

नकाबपोश––मुलाकात तो नहीं हुई, मगर जिन बातों का शक था मिट गया और जो बातें मालूम न थीं, वे मालूम हो गई जिससे इस समय हम लोग पुनः उनका किस्सा कहने के लिए तैयार हैं। (देवीसिंह की तरफ देखकर) आपने भूतनाथ को अकेला ही