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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१५

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इतना सुनकर वीरेन्द्रसिंह चुप हो रहे और लिफाफा खोलकर पढ़ने लगे। प्रणाम इन्यादि के बाद यह लिखा था––

"हम दोनों भाई कुशलपूर्वक तिलिस्म की कार्रवाई कर रहे हैं। परन्तु कोई ऐयार या मददगार न रहने के कारण कभी-कभी तकलीफ हो जाती है, इसलिए आशा है कि भैरोंसिंह और तारासिंह को शीघ्र भेज देंगे। यहाँ तिलिस्म में ईश्वर ने हमें दो मददगार बहुत अच्छे पहुँचा दिये हैं जिनका नाम रामसिंह और लक्ष्मणसिंह है। ये दोनों मायारानी और तिलिस्मी दारोगा इत्यादि के भेदों से खूब वाकिफ हैं। यदि इन लोगों के सामने दुष्टों के मुकदमे का फैसला करेंगे तो आशा है कि देखने-सुनने वालों को एक अपूर्व आनन्द मिलेगा। इन्हीं दोनों की जुबानी हम दोनों भाइयों का हाल पूरा-पूरा मिला करेगा और ये ही दोनों भैरोंसिंह को भी हम लोगों के पास पहुँचा देंगे। भाई गोपालसिंह से कह दीजियेगा कि उनके दोस्त भरतसिंहजी भी इस तिलिस्म में मुझे मिले हैं। उन्हें कम्बख्त दारोगा ने कैद किया था, ईश्वर की कृपा से उनकी जान बच गई। भाई गोपालसिंहजी मुझसे बिदा होते समय तालाब वाली नहर के विषय में गुप्त रीति से जो कुछ कह गये थे वह ठीक निकला, चाँद वाला पताका भी हम लोगों को मिल गया।

––आपके आज्ञाकारी पुत्र––इन्द्रजीत, आनन्द।"

इस चिट्ठी को पढ़ कर वीरेन्द्रसिंह बहुत ही प्रसन्न हुए, मगर साथ ही इसके उन्हें ताज्जुब भी हद से ज्यादा हुआ। इन्द्रजीतसिंह के हाथ के अक्षर पहचानने में किसी तरह की भूल नहीं हो सकती थी, तथापि शक मिटाने के लिए वीरेन्द्रसिंह ने वह चिट्ठी राजा गोपालसिंह के हाथ में दे दी, क्योंकि उनके विषय में भी दो-एक गुप्त बातों का ऐसा इशारा था जिसके पढ़ने से इस बात का रत्ती भर भी शक नहीं हो सकता था कि यह चिट्ठी कुमार के हाथ की लिखी हुई नहीं है या ये नकाबपोश जाल करते हैं।

चिट्ठी पढ़ने के साथ ही राजा गोपालसिंह हद से ज्यादा खुश होकर चौंक पड़े और राजा वीरेन्द्रसिंह की तरफ देखकर बोले, "निःसन्देह यह पत्र इन्द्रजीतसिंह के हाथ का लिखा हुआ है। विदा होते समय जो गुप्त बातें मैं उनसे कह आया था, इस चिट्ठी में उनका जिक्र एक अपूर्व आनन्द दे रहा है, तिस पर अपने मित्र भरतसिंह के पास जाने का हाल पढ़कर मुझे जो प्रसन्नता हुई, उसे मैं शब्दों द्वारा प्रकट नहीं कर सकता। (नकाबपोशों की तरफ देख के) अब मालूम हुआ कि आप लोगों के नाम रामसिंह और लक्ष्मणसिंह हैं, जरूर आप लोग बहुत सी बातों को छिपा रहे हैं, परन्तु जिस समय भेदों को खोलेंगे, उस समय निःसन्देह एक अद्भुत आनन्द मिलेगा।"

इतना कहकर राजा गोपालसिंह ने वह चिट्ठी तेजसिंह के हाथ में दे दी और उन्होंने पढ़कर देवीसिंह को और देवीसिंह ने पढ़कर और ऐयारों को भी दिखाई जिसके सबब से इस समय सब ही के चेहरे पर प्रसन्नता दिखाई देने लगी। इसी समय तारासिंह भी वहाँ आ पहुँचा।

नकाबपोश ने जो कुछ कहा था वही हुआ, अर्थात् थोड़ी देर में तारासिंह ने भी वहाँ पहुँचकर सभी के दिल से खुटका दूर किया, मगर हमारे राजा साहब और ऐयारों