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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२१७

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किया। उस कड़ी के साथ लोहे की पच्चीस-तीस हाथ लम्बी जंजीर लगी हुई थी जो बराबर खिंचती हुई चली आई और जब वह रुक गई अर्थात् अपनी हद तक खिंच कर बाहर निकल आई, तब उस चबूतरे के चारों तरफ का निचला पत्थर आप से आप उखड़कर जमीन के साथ लग गया और उसके अन्दर जाने के लिए दो रास्ते दिखाई देने लगे। इनमें से एक रास्ता नीचे तहखाने में उतर जाने के लिए था और दूसरा बुर्ज के ऊपर चढ़ने के लिए।

दोनों कुमार पहले बुर्ज के ऊपर चढ़ गये और वहाँ से चारों तरफ की बहार देखने लगे। खास बाग के कुछ हिस्से और उनके कई तरफ की मजबूत दीवारें तथा कुछ इमारतें और पेड़-पत्ते इत्यादि दिखाई दे रहे थे। उन सभी को गौर से देखने के बाद कुमार नीचे उतर आये और उन पाँचों कैदियों को यह कहकर कि "तुम लोग इसी बाग में रहो, खबरदार नीचे न उतरना" दोनों भाई तहखाने में उतर गये।

नीचे उतरने के लिए चक्करदार ग्यारह सीढ़ियाँ थीं जिन्हें तै करने के बाद वे दोनों एक लम्बे-चौड़े कमरे में पहुँचे। वहाँ बिल्कुल अन्धकार था, मगर तिलिस्मी खंजर की रोशनी करने पर वहाँ की सब चीजें साफ दिखाई देने लगीं। वह कमरा लम्बाई में बीस हाथ और चौड़ाई में पन्द्रह हाथ से ज्यादा न होगा। उसके बीचोंबीच में लोहे का एक चबूतरा था और उसके ऊपर लोहे की एक शेर बैठा हुआ था जिसकी चमकदार आँखें उसके भयानक चेहरे के साथ ही साथ देखने वालों के दिल पर खौफ पैदा कर सकती थीं। उसके सामने जमीन पर लोहे का एक हथौड़ा पड़ा हुआ था। बस इसके अतिरिक्त उस कमरे में और कुछ भी न था। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने उस शेर के सिर को अच्छी तरह टटोलना शुरू किया।

उस शेर के दाहिने कान की तरफ केवल एक उँगली जाने लायक छोटा-सा गढ़ा था। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने अपनी जेब में से एक चमकदार चीज निकाल कर उस गड़हे में फँसाने के बाद शेर के सामने वाला हथौड़ा जमीन से उठाकर उसी से वह चमकदार चीज (कील) एक ही चोट में ठोंक दी और इसके बाद तुरन्त ही दोनों भाई उस तहखाने के बाहर निकल आये।

वह चमकदार चीज, जो शेर के सिर में ठोंकी गई, क्या थी इसे आप लोग जानते होंगे। यह वही चमकदार चीज थी जो कुँअर इन्द्रजीतसिंह को बाग के उस तहखाने में एक पुतले के पेट में से मिली थी, जिसमें वे कुँअर आनन्दसिंह को खोजते हुए गये थे।[]

जब दोनों कुमार तहखाने के बाहर निकल आये, उसके थोड़ी ही देर बाद जमीन के अन्दर से धमधमाहट और घड़घड़ाहट की आवाज आने लगी, जिससे वे पाँचों कैदी बहुत ही ताज्जुब और घबराहट में आ गये। मगर कुमार ने उन्हें समझा कर शान्त किया

और कुछ खाने-पीने की फिक्र में लगे। पहर भर बाद वह आवाज बन्द हुई और तब तक कुमार भी हर तरह से निश्चिन्त हो गये। दोपहर दिन ढलने बाद पाँचों कैदियों को साथ लिए हुए दोनों कुमार पुनः तहखाने के अन्दर उतरे। जब उस कमरे मे


  1. देखिए चन्द्रकान्ता संतति, दसवाँ भाग, पहला बयान।