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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२२५

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होकि जिन दो औरतों को हमने नकाबपोशों के मकान में देखा था वे कौन थीं?"

तारासिंह––उनमें से एक तो जरूर भूतनाथ की स्त्री थी मगर दूसरी के बारे में अभी तक कुछ पता नहीं लगा।

देवीसिंह––(कुछ सोच कर) दूसरी तुम्हारी माँ होगी?

तारासिंह––शायद ऐसा ही हो मगर विश्वास नहीं होता।

तेजसिंह––तुम्हें यह कैसे निश्चय हुआ कि वह वास्तव में भूतनाथ की स्त्री थी?

तारासिंह––उसने स्वयं भूतनाथ की स्त्री होना स्वीकार किया बल्कि और भी बहुत-सी बातें ऐसी कहीं जिससे किसी तरह का शक नहीं रहा।

देवीसिंह––और तुम्हें यह कैसे मालूम हुआ कि नकाबपोशों के घर में जाकर हम लोगों ने किसे देखा या जंगल में भूतनाथ की स्त्री हम लोगों को मिली थी और हमलोग उसके पीछे-पीछे एक झोंपड़ी में जाकर सूखे हाथ लौट आये थे?

तारासिंह––यह सब हाल मुझे बखूबी मालूम है क्योंकि उस समय मैं भी उसी जंगल में था जिस समय आपने भूतनाथ की स्त्री को देखा और उसके पीछे-पीछे गये थे। इस समय आप यह सुनकर और ताज्जुब करेंगे कि आपसे अलग होकर भूतनाथ ने उसी दिन अर्थात् कल संध्या के समय उन दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार कर लिया जिनकी सूरत यहाँ दरबार में देखकर दारोगा और जयपाल बदहवास हो गये थे। की

वीरेन्द्रसिंह––(ताज्जुब से) हैं! मगर वे दोनों नकाबपोश तो आज भी यहाँ आये थे जिनका जिक्र तुम कर रहे हो।

तारासिंह––जी हाँ उन्हें तो मैं अपनी आँखों ही से देख चुका हूँ, मगर मेरे कहने का मतलब यह है कि भूतनाथ ने कल जिन दोनों नकाबपोशों को गिरफ्तार किया है उनकी सूरतें ठीक वैसी ही हैं जैसी दारोगा और जयपाल ने यहाँ देखी थीं, चाहे ये लोग हों कोई भी।

तेजसिंह––और भूतनाथ ने उन्हें गिरफ्तार कहाँ पर किया?

तारासिंह––उसी खोह के मुहाने पर उसने उन्हें धोखा दिया जिसमें नकाबपोश लोग रहते थे।

देवीसिंह––मालूम होता है कि हम लोगों की तरह तुम भी कई दिनों से नकाबपोशों की खोज में पड़े हो?

तारासिंह––खोज में नहीं, बल्कि फेर में।

वीरेन्द्रसिंह––खैर, तुम खुलासा तौर पर सब हाल बयान कर जाओ, इस तरह पूछने और कहने से काम नहीं चलेगा।

तारासिंह––जो आज्ञा, मगर मेरा हाल कुछ बहुत लम्बा-चौड़ा नहीं। केवल इलना ही कहना है कि मैं भी पाँच-सात दिन से उन दोनों नकाबपोशों के फैसले में पड़ा हूँ और इत्तिफाक से मैं भी उसी खोह के अन्दर जा पहुँचा था जिसमें वे लोग रहते हैं। (कुछ सोच और जीतसिंह की तरफ देखकर) अगर के अगर कोई हर्ज न हो ती दो घण्टे के बाद मुझसे मेरा हाल पूछा जाय।

जीतसिंह––(महाराज की तरफ देखकर और कुछ इशारा पाकर) खर कोई