पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२२६

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चिन्ता नहीं, मगर यह बताओ कि इस दो घण्टे के अन्दर तुम क्या काम करोगे?

तारासिंह––कुछ भी नहीं, मैं केवल अपनी माँ से मिल लूँगा और स्नान-ध्यान से छुट्टी पा लूँगा।

देवीसिंह––(धीरे से) आज-कल के लड़के भी कुछ विचित्र ही पैदा होते हैं, खास कर ऐयारों के।

इसके जवाब में तारासिंह ने अपने पिता की तरफ देखा और मुस्कुराकर सिर झुका लिया। यह बात देवीसिंह को कुछ बुरी मालूम हुई मगर बोलने का मौका न देखकर चुप रह गये।

तेजसिंह––(तारासिंह से) आज जब हम लोग तुम्हारे न मिलने से परेशान थे तो हमारी परेशानी को देखकर नकाबपोशों ने कहा था कि तारासिंह के लिए आपको तरद्दुद नहीं करना चाहिए, आशा है कि वह घण्टे-भर के अन्दर ही यहाँ आ पहुँचेगा। और वास्तव में हुआ भी ऐसा ही, तो क्या नकाबपोशों को तुम्हारा हाल मालूम था? यह बात नकाबपोशों से भी पूछी गई थी मगर उन्होंने कुछ जवाब न दिया और कहा कि 'इसका जवाब तारा ही देगा।'

तारासिंह––नकाबपोशों की सभी बातें ताज्जुब की होती हैं। मैं नहीं जानता कि उन्हें मेरा हाल क्योंकर मालूम हुआ।

तेजसिंह––क्या तुम्हें इस बात की खबर है कि इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह ने तुम्हें और भैरोंसिंह को बुलाया है?

तारासिंह––जी नहीं।

तेजसिंह––(कुमार की चिट्ठी तारासिंह को दिखाकर) लो, इसे पढ़ो।

तारासिंह––(चिट्ठी पढ़कर) नकाबपोशों ही के हाथ यह चिट्ठी आई होगी?

तेजसिंह––हाँ, और उन्हीं नकाबपोशों के साथ तुम दोनों को जाना भी पड़ेगा।

तारासिंह––जब मर्जी होगी, हम दोनों चले जायेंगे।

इसके बाद महाराज की आज्ञानुसार दरबार बर्खास्त हुआ और सब कोई अपने-अपने ठिकाने चले गये। तारासिंह भी महल में अपनी माँ से मिलने के लिए चला गया और घण्टे भर से ज्यादा देर तक उसके पास बैठा बातचीत करता रहा, इसके बाद जब महल से बाहर आया तो सीधे जीतसिंह के डेरे में चला गया और जब मालूम हुआ कि वे महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास गये हुए हैं तो खुद भी महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास महल में ही चला गया।

हम नहीं कह सकते कि महाराज सुरेन्द्रसिंह, जीतसिंह और तारासिंह में देर तक क्या-क्या बातें होती रहीं, हाँ इसका नतीजा यह जरूर निकला कि तारासिंह को पुनः अपना हाल किसी से न कहना पड़ा, अर्थात् महाराज ने उसे अपना हाल बयान करने से माफी दे दी और तारसिंह को भी जो कुछ कहना-सुनना था, महाराज से ही कह-सुनकर छुट्टी पा ली। औरों को तो इस बात का ऐसा खयाल न हुआ, मगर देवीसिंह को यह चालाकी बुरी मालूम हुई और उन्हें निश्चय हो गया कि तारासिंह और चम्पा दोनों माँ-बेटे मिले हुए हैं और साथ ही इसके बड़े महाराज भी इस भेद को जानते हैं, मगर