पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२३४

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लगी, और वह सकते की सी हालत में ताज्जुब के साथ नकाबपोश के चेहरे पर गौर करने लगा।

नकाबपोश––तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास हुआ या नहीं?

भूतनाथ––नहीं, तुम दलीपशाह कदापि नहीं हो सकते! यद्यपि मैंने दलीपशाह की सूरत नहीं देखी है, मगर मैं उसके पहचानने में गलती नहीं कर सकता और न इसी बात की उम्मीद हो सकती है कि दलीपशाह मुझे माफ कर देगा या मेरे साथ दोस्ती का बर्ताव करेगा।

नकाबपोश––तो मुझे दलीपशाह होने के लिए कुछ और भी सबूत देना पड़ेगा और उस भयानक रात की ओर इशारा करना पड़ेगा जिस रात को तुमने वह कार्रवाई की थी, जिस रात को घटाटोप अँधेरी छाई हुई थी, बादल गरज रहे थे, तो बार-बार बिजली चमककर औरतों के कलेजों को दहला रही थी, बल्कि उसी समय एक दफे बिजली तेजी के साथ चमक कर पास ही वाले खजूर के पेड़ पर गिरी थी, और तुम स्याह कम्बल की धोंघी लगाये आम की बारी में घुसकर यकायक गायब हो गये थे। कहो, कुछ और भी परिचय दूँ या बस!

भूयनाथ––(काँपती हुई आवाज में) बस-बस, मैं ऐसी बातें सुनना नहीं चाहता। (कुछ रुककर) मगर मेरा दिल यही कह रहा है कि तुम दलीपशाह नहीं हो।

नकाबपोश––हाँ! तब तो मुझे कुछ और भी कहना पड़ेगा। जिस समय तुम घर के अन्दर घुसे थे, तुम्हारे हाथ में स्याह कपड़े का एक बहुत बड़ा लिफाफा था, जब मैंने तुम पर खंजर का वार किया, तब वह लिफाफा तुम्हारे हाथ से गिर पड़ा और मैंने उठा लिया, जो अभी तक मेरे पास मौजूद है, अगर तुम चाहो तो मैं दिखा सकता हूँ।

भूतनाथ––(जिसका बदन डर के मारे काँप रहा था) बस-बस-बस, मैं तुम्हें कह चुका हूँ और फिर कहता हूँ कि ऐसी बातें सुनना नहीं चाहता और न इसके सुनने से मुझे विश्वास ही हो सकता है कि तुम दलीपशाह हो। मुझ पर दया करो और अपनी चलती-फिरती जुबान रोको!

नकाबपोश––अगर विश्वास नहीं हो सका हो तो मैं कुछ और भी कहूँगा और अगर तुम न सुनोगे तो अपने साथी को सुनाऊँगा। (अपने साथी नकाबपोश की तरफ देख के) मैं उस समय अपनी चारपाई के पास बैठा कुछ लिख रहा था जब यह भूतनाथ मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। कम्बल की घोंघी एक क्षण के लिए इसके आगे की तरफ हट गई थी और इसके कपड़े पर पड़े हुए खून के छींटे दिखाई दे रहे थे। यद्यपि मेरी तरह इसके चेहरे पर भी नकाब पड़ी हुई थी, मगर मैं ख ब समझता था कि यह भूतनाथ है। मैं उठ खड़ा हुआ और फुरती के साथ इसके चेहरे पर से नकाब हटाकर इसकी सूरत देख ली। उस समय इसके चेहरे पर भी खून के छींटे पड़े हुए दिखाई दिए। भूतनाथ ने मुझे डाटकर कहा कि 'तुम हट जाओ और मुझे अपना काम करने दो'। तब तक मुझे इस बात की कुछ भी खबर न थी कि यह मेरे पास क्यों आया है और क्या चाहता है। जब मैंने पूछा कि 'तुम क्या करना चाहते हो और मैं यहाँ से क्यों हट जाऊँ तब इसने मुझ पर खंजर का वार किया, क्योंकि यह उस समय बिल्कुल पागल हो रहा था और