सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
26
 

हैं कि बनी-बनाई बात किस तरह चौपट होती है।

संध्या होने से पहले खाने-पीने का सामान, चार रथ और दो सौ सवारों को लेकर नकली रामदीन पिपलिया घाटी की तरफ रवाना हुआ और दूसरे दिन दोपहर के बाद वहाँ पहुँचा।

आज ही संध्या होने के पहले राजा गोपालसिंह यहाँ पहुँचने वाले थे यह बात रामदीन की जुबानी सभी को मालूम हो चुकी थी और सभी आदमी उनके आने का इन्तजार कर रहे थे।

संध्या हो गई, चिराग जल गया, पहर रात गई, दोपहर रात गुजरी, आखिर तमाम रात बीत गई, मगर राजा गोपालसिंह नहीं आये, इसलिए नकली रामदीन के ताज्जुब का तो कहना ही क्या? उसके दिल में तरह-तरह की बातें पैदा होने लगीं, मगर इसके अतिरिक्त जितने फौजी सवार तथा अन्य लोग साथ आये थे उन सबको भी बहुत ताज्जुब हुआ और वे घड़ी-घड़ी राजा साहब के न आने का सबब उससे पूछने लगे, मगर रामदीन क्या जवाब देता? उसे इन बातों की खबर क्या थी!

दूसरे दिन संध्या के समय राजा गोपालसिंह घोड़े पर सवार वहाँ आ पहुँचे मगर अकेले थे, साईस तक साथ न था। सिपाहियाना ठाठ से बेशकीमत कपड़ों के ऊपर तिलिस्मी कवच खंजर और ढाल-तलवार लगाये बहुत ही सुन्दर तथा रोआबदार मालूम होते थे। सभी ने झुककर सलाम किया और नकली रामदीन ने आगे बढ़कर घोड़े की लगाम थाम ली तथा उसकी गर्दन पर चार थपकी देकर कहा, "आश्चर्य है कि आपके आने में पूरे आठ पहर की देर हो गई है और फिर भी अकेले ही हैं!"

यह सुनकर राजा साहब ने कई पल तक रामदीन का मुँह देखा और तब कहा, "हाँ, किशोरी, कामिनी और लक्ष्मीदेवी वगैरह ने हमारे साथ आने से इनकार किया इसलिये हम अकेले ही आये हैं और हमारे जाने में रात भर की देर है। इस समय हम किसी काम को जाते हैं सवेरे यहाँ आयेंगे, तब तक तुम सभी को इस घाटी में टिके रहना होगा!"

रामदीन––घोड़ों का दाना तो सिर्फ एक ही दिन का आया था, और सवार लोग भी...

गोपालसिंह––खैर, क्या हर्ज है, घोड़े चराई पर गुजर कर लेंगे और सवार लोग रात भर फाका करेंगे।

इतना कहकर राजा गोपालसिंह ने घोड़े की बाग मोड़ी और जिधर से आये थे उसी तरफ तेजी के साथ रवाना हो गये। रामदीन चुपचाप ज्यों-का-त्यों खड़ा उनकी तरफ देखता ही रह गया और जब वे नजरों की ओट हो गये तब उसने सभी को राजा साहब का हुक्म सुनाया और इसके बाद अपने बिछावन पर जाकर सोचने लगा––

गोपालसिंह की बातें कुछ समझ में नहीं आतीं और न उनके इरादे का ही पता लगता है! लक्ष्मीदेवी और कमलिनी वगैरह को न मालूम क्यों छोड़ आये और जब उन्होंने इनके साथ आने से इनकार किया तो इन्होंने मान क्यों लिया? क्या अब लक्ष्मीदेवी का और इनका साथ न होगा? अगर ये अकेले जमानिया गए तो क्या केवल इन्हीं के साथ