सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
27
 

वह सलूक किया जायेगा जो हम सोच चुके हैं? मगर कमलिनी वगैरह का बचे रह जाना तो अच्छा नहीं होगा। लेकिन फिर क्या किया जाये लाचारी है, हाँ, एक बात का इन्तजाम तो कुछ किया ही नहीं गया और न पहले इस बात का विचार ही हुआ। जमानिया पहुँचने पर जब दीवान साहब की जुबानी गोपालसिंह को यह मालूम होगा कि रामदीन ने चार आदमियों को खास बाग के अन्दर पहुँचाया है तब वह क्या सोचेंगे और पूछने पर मुझसे क्या जवाब पावेंगे? कुछ भी नहीं। इस बात का जवाब देना मेरे लिए कठिन हो जायेगा। तब फिर खास बाग पहुँचने के पहले ही मेरा भाग जाना उचित होगा? ओफ, बड़ी भूल हो गई, यह बात पहले न सोच ली! दीवान साहब को बिना कुछ कहे ही उन सभी को खास बाग में पहुँचा देना मुनासिब होता। मगर ऐसा करने पर भी तो काम नहीं चलता। अगर दीवान साहब को नहीं तो खास बाग के पहरेदारों को तो मालूम ही हो जाता कि रामदीन चार आदमियों को बाग के अन्दर छोड़ गया है और उन्हीं की जुबानी यह बात राजा साहब को भी मालूम हो जाती। बात एक ही थी, सबसे अच्छा तो तब होता जब वे लोग किसी गुप्त राह से बाग के अन्दर जाते, मगर यह सम्भव न था क्योंकि जरूर भीतर से सभी रास्ते गोपालसिंह ने बन्द कर रखे होंगे। तब क्या करना चाहिये? हाँ, भाग ही जाना सबसे अच्छा होगा। मगर मायारानी को भी तो इस बात की खबर कर देनी चाहिए। अच्छा तब जमानिया होकर और मायारानी को कह-सुनकर भागना चाहिए। नहीं अब तो यह भी नहीं हो सकता, क्योंकि मायारानी फौजी सिपाहियों को बाग के अन्दर करके साथियों समेत कहीं छिप गई होगी और मैं उस भाग के गुप्त भेदों को न जानने के कारण इस लायक नहीं हूँ कि मायारानी को खोज निकालूँ और अपने दिल का हाल उनसे कहूँ या उन्हीं के साथ आने भी छिप रहूँ। ओफ! वह तो मजे में अपने ठिकाने पहुँच गई मगर मुझे आफत में डाल गईं। खैर, अभी तो नहीं मगर गोपालसिंह को जमानिया की हद में पहुँचाकर जरूर भाग जाना पड़ेगा। फिर जब मायारानी उन्हें मारकर अपना दखल जमा लेंगी तब फिर उनसे मुलाकात होती रहेगी। इन्हीं विचारों में लीला (नकली रामदीन) ने तमाम रात आँखों में बिता दी। सवेरा होने के पहले ही वह जरूरी कामों से छुट्टी पाने के लिए घोड़े पर सवार होकर दूर चली गई और घण्टे भर बाद लौट आई।


7

दिन अनुमान दो घड़ी के चढ़ चुका होगा जब राजा गोपालसिंह दो आदमियों को साथ लिए हुए धीरे-धीरे आते दिखाई पड़े। वे दोनों भैरोंसिंह और इन्द्रदेव थे और पैदल थे। जब तीनों उस ठिकाने पर पहुँच गये जहाँ राजा साहब के रथ और सवार लोग थे तब राजा साहब ने अपना घोड़ा छोड़ दिया और उस पर भैरोंसिंह को सवार होने के लिए कहा तथा और सवारों को भी घोड़ों पर सवार हो जाने के लिए इशारा किया,