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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/३६

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करते-करते मायारानी चौंकी और उस तरफ हाथ का इशारा करके बोली––"हैं! उस छत पर कौन जा पहुँचा है?"

माधवी––हाँ, एक आदमी हाथ में नंगी तलवार लेकर टहल तो रहा है।

भीमसेन––चेहरे पर नकाब डाले हुए है।

कुबेरसिंह––हमारे फौजी सिपाहियों में से शायद कोई ऊपर चला गया होगा, मगर उन्हें बिना हुक्म ऐसा नहीं करना चाहिए!

मायारानी––नहीं-नहीं, उस मकान में सिवा मेरे और कोई नहीं जा सकता।

माधवी––तो फिर वहाँ गया कौन?

मायारानी––यही तो ताज्जुब है! देखिए, एक और भी आ पहुँचा, यह तीसरा आया, मामला क्या है?

अजायबसिंह––कहीं राजा गोपालसिंह कुएँ में घुसकर वहाँ न जा पहुँचे हों! मगर वे तो केवल दो ही आदमी थे!

मायारानी––और ये तीन हैं! (कुछ रुककर) लीजिए, अब पाँच हो गये।

मायारानी और उसके संगी-साथियों के देखते-देखते उस छत पर पचीस आदमी हो गये। उन सभी के हाथों में नंगी तलवारें थीं। जिस छत पर वे सब थे, वहाँ पर से ऊपर मायारानी के पास तक आने में यद्यपि कई तरह की रुकावटें थीं, मगर ऐयारों के लिए यह कोई मुश्किल बात न थी इसीलिए मायारानी के पक्ष वालों को भय हुआ और उन्होंने चाहा कि अपने फौजी आदमियों में से कुछ को ऊपर बुला लें और ऐसा करने के लिए अजायबसिंह को कहा गया।

अजायबसिंह फौजी सिपाहियों को लाने के लिए चला गया, मगर मकान के नीचे न जा सका और तुरन्त लौट आकर बोला, "जाने का हर दरवाजा बन्द है, कोई तरकीब मायारानी करें तो शायद वहां तक पहुँचने की नौबत आवे?"

अजायबसिंह की इस बात ने सभी को चौंका दिया और साथ ही इसके सभी को अपनी-अपनी जान की फिक्र पड़ गई। मायारानी के दिलाये हुए भरोसे से जो कुछ उम्मीद की जड़ इन लोगों के दिलों में जमी थी, वह हिल गई और अब अपने किए पर पछताने की नौबत आई, मगर मायारानी अब भी बात बनाने से न चूकी, यह कहती हुई अपनी जगह से उठी कि "कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह इस तिलिस्म को तोड़ रहे हैं, इस- लिए ताज्जुब नहीं कि ये सब बातें कुछ उन्हीं से सम्बन्ध रखती हों।"

मायारानी स्वयं नीचे उतरी थी, मगर जा न सकी और अजायबसिंह की तरह लाचार होकर बैरग लौट आई। उस समय उसके दिल में भी तरह-तरह के खुटके पैदा और वह ताज्जुब की निगाह से उन लोगों की तरफ देखने लगी, जो उसके मुकाबले में एकाएक आकर अब गिनती में पचीस हो गये थे।

थोड़ी देर बाद वे ऊपर से कूदते-फाँदते मायारानी की तरफ आते हुए दिखाई दिए। उस समय मायारानी और उसके संगी-साथी सभी उठ खड़े हुए और अपनी-अपनी जान बचाने की नीयत से तलवारें खींच मुस्तैद हो गये।

बात-की-बात में वे पचीसों आदमी उस छत पर चले आये, जिस पर मायारानी

च॰ स॰-5-2