पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/३७

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थी, मगर मायारानी या उसके साथियों से किसी ने कुछ भी न कहा, बल्कि उनकी तरफ आँख उठाकर देखा भी नहीं और मस्तानी चाल से चलते हुए छत के नीचे उतर गए। इन लोगों ने भी यह सोचकर कि वे लोग गिनती में हमसे ज्यादा हैं, रोक-टोक नहीं की, मगर इस बात का खयाल जरूर रहा कि नीचे जाने के रास्ते तो सब बन्द हैं, खुद मायारानी भी न जा सकी और लौट आई, इन सभी को भी निःसन्देह लौट आना पड़ेगा, मगर थोड़ी देर में यह गुमान जाता रहा जब कि पचीसों नीचे उतर कर बाग के बीच में चलते हुए दिखाई दिए।

माधवी ने समझा कि हमारे फौजी सिपाही उन लोगों को जरूर टोकेंगे और वास्तव में बात ऐसी ही थी। उन पचीसों को बाग में देख फौजी सिपाहियों में खलबली मच गई और बहुतों ने उठकर उन लोगों को रोकना चाहा, मगर वे लोग देखते-ही-देखते पेड़ों की झुरमुट में घुसकर ऐसा गायब हुए कि किसी का पता भी न लगा और सब लोग आश्चर्य से देखते रह गए। उस समय माधवी ने मायारानी से कहा, "बहिन, यहाँ तो मामला बेढब नजर आता है!"

मायारानी––कुछ समझ में नहीं आता कि ये लोग कौन थे, यहाँ क्यों आये और हम लोगों को बिना रोके-टोके इस तरह क्यों और कहाँ गायब हो गये!

माधवी––यह तो ठीक ही है मगर मैं पूछती हूँ कि आप तिलिस्म की रानी कहलाकर भी इस बाग का हाल क्या जानती हैं? मैं तो समझती हूँ कि कुछ भी नहीं जानतीं। खास अपने कमरे का मामूली दरवाजा भी आपसे नहीं खुलता और हम लोगों की जान मुफ्त में जाना चाहती है!

भीमसेन––अब आपकी कोई कार्रवाई हम लोगों को भरोसा नहीं दिला सकती।

मायारानी––इस समय मैं मजबूर हो रही हूँ इसलिए टेढ़ी-सीधी जो जी में आवे सुनाओ, लेकिन अगर इस मकान के नीचे उतरने की नौबत आयेगी, तो दिखा दूँगी कि मैं क्या कर सकती हूँ।

कुबेरसिंह––नोचे जाने की नौबत ही क्यों आवेगी! गैर लोग आवें, और चले जायें, मगर यहाँ की रानी होकर तुम कुछ न कर सको, यह बड़े शर्म की बात है।

मायारानी इसका जवाब कुछ देना ही चाहती थी कि सीढ़ी की तरफ से आवाज आई, "तुम लोगों के कलपने पर मुझे दया आती है, अच्छा आओ हम दरवाजा खोल देते हैं, तुम लोग नीचे उतर आओ और अपनी जान बचाओ!" इसके बाद सीढ़ी वाले दरवाजे के खुलने की आवाज आई।

सभी को ताज्जुब हुआ और सीढ़ी की तरफ जाते डर मालूम हुआ, मगर यह सोचकर कि यहाँ पड़े रहने से भी जान बचने की आशा नहीं है, सभी ने जी कड़ा करके नीचे उतरने का इरादा किया।

वास्तव में दरवाजे जो बन्द हो गये थे खुले हुए दिखाई दिये और सब कोई जल्दी के साथ नीचे उतर गये, उस समय मायारानी ने एक लम्बी साँस लेकर कहा, "अब कोई चिन्ता नहीं।"

बाकरअली––मगर यह न मालूम हुआ कि दरवाजा खोलने वाला कौन था?