आनन्दसिंह––मालूम होता है कि और भी दो-चार आदमी यहाँ उतारे जायेंगे।
इन्द्रजीतसिंह––शायद ऐसा ही हो, यहाँ से हटकर और आड़ में होकर देखना चाहिए।
आनन्दसिंह––(सोतों बेहोशों की तरफ इशारा करके) यदि इन लोगों को इनके किसी दुश्मन ने यहाँ पहुँचाया हो और अबकी दफे कोई आकर इनकी जान...
इन्द्रजीतसिंह––नहीं-नहीं, अगर ये सब लोग मारे जाने लायक होते और जिन लोगों ने इन्हें नीचे उतारा है वे इनके जानी दुश्मन होते, तो धीरे से उतारने के बदले ऊपर से धक्का देकर नीचे गिरा देते। खैर ज्यादा बातचीत का मौका नहीं है, इस पेड़ की आड़ में हो जाओ, फिर देखो हम सब पता लगा लेते हैं। बस, हटो जल्दी करो
बेचारे आनन्दसिंह कुछ जवाब न दे सके और वहाँ से थोड़ी दूर हटकर एक पेड़ की आड़ में हो गए। इस समय चन्द्रदेव अपनी छावनी की तरफ जा रहे थे और पेड़ों की आड़ पड़ जाने के कारण उस जगह कुछ अन्धकार-सा छा गया था, जहाँ वे सातों बेहोश पड़े हुए थे और इन्द्रजीत खड़े थे।
इन्द्रजीतसिंह हाथ में तिलिस्मी खंजर लेकर फुर्ती से इन सातों के बीच में छिपकर लेट रहे, दोनों तरफ से दो आदमियों के लबादे को भी अपने बदन पर ले लिया और पड़े-पड़े ऊपर की तरफ देखने लगे। एक आदमी कमन्द के सहारे नीचे उतरता हुआ दिखाई दिया। जब वह जमीन पर उतरकर उन सातों आदमियों की तरफ आया तो इन्द्रजीतसिंह ने फुर्ती से हाथ बढ़ाकर तिलिस्मी खंजर उसके पैर से लगा दिया, साथ ही वह आदमी काँपा और बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। इन्द्रजीतसिंह पुनः उसी तरह लेट ऊपर की तरफ देखने लगे। थोड़ी देर बाद के और एक आदमी उसी कमन्द के सहारे नीचे उतरा जो घूम-घूम के गौर से उन सातों को देखने लगा। जब वह कुमार के पास आया, कुमार ने उसके पैर से भी तिलिस्मी खंजर लगा दिया और वह भी पहले की तरह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। कुँअर इन्द्रजीत लेटे-लेटे और भी किसी के आने का इन्तजार करने लगे मगर कुछ देर हो जाने पर भी कोई तीसरा दिखाई न पड़ा। कुमार उठ खड़े हुए और आनन्दसिंह भी उनके पास चले आये।
इन्द्रजीतसिंह––तुम इसी जगह मुस्तैद रहकर इन सभी की निगहबानी करो, हम इसी कमन्द के सहारे ऊपर जाकर देखते हैं कि वहाँ क्या है।
आनन्दसिंह––आपका अकेले ऊपर जाना तो ठीक न होगा। कौन ठिकाना, वहाँ दुश्मनों की बारात लगी हो!
इन्द्रजीतसिंह––कोई हर्ज नहीं, जो कुछ होगा देखा जायगा मगर तुम यहाँ से मत हिलना।
इतना कहकर इन्द्रजीतसिंह उसी कमन्द के सहारे बहुत जल्द ऊपर चढ़ गये और खिड़की के अन्दर जाकर एक लम्बे-चौड़े कमरे में पहुँचे जहाँ यद्यपि बिल्कुल सन्नाटा था मगर एक चिराग जल रहा था। इस कमरे में दूसरी तरफ बाहर निकल जाने के लिए एक बड़ा-सा दरवाजा था, कुमार वहाँ चले गये और एक पैर दरवाजे के बाहर रख झाँकने लगे। एक दूसरा कमरा नजर पड़ा जिसमें चारों तरफ छोटे-छोटे कई दरवाजे