गये थे?
भैरोंसिंह––पहले तो उन्होंने इन्द्रदेव को बहुत सी बातें समझाई-बुझाई, जिन्हें मैं समझ न सका। इसके बाद इन्द्रदेव को तो गोपालसिंह बनाया और इन्द्रदेव के एक ऐयार को भैरोंसिंह बनाकर दोनों को खास बाग के अन्दर भेजा। इस काम से छुट्टी पाकर सब औरतों को और मुझे साथ-साथ लिए उस मकान में आये। सभी को तो उस कमरे में बैठा दिया जिसमें से कमन्द के सहारे सबको लटकाया था और फिर मुझे उनकी हिफाजत के लिए छोड़ने के बाद कमलिनी को साथ लिए हुए कहीं चले गये और घण्टे भर के बाद वापस आये। उस समय कमलिनी के हाथ में एक छोटी-सी किताब थी जिसे उन्होंने कई दफा तिलिस्मी किताब के नाम से सम्बोधन किया था। इसके बाद उन्होंने सभी को बेहोश करके नीचे लटका दिया। इस काम से छुट्टी पाकर उन्होंने आपके नाम की दो चिट्ठियाँ लिखीं, एक तो उस कमरे में रक्खी और दूसरी चिट्ठी जिसका मैं अभी जिक्र कर चुका हूँ मुझे देकर कहा कि "जब कुमारों से तुम्हारी मुलाकात हो तो यह चिट्ठी उन्हें देना और सब काम कमलिनी की आज्ञानुसार करना, यहाँ तक कि यदि कमलिनी तुम्हें सामना हो जाने पर भी कुमारों से मिलने के लिए मना करे तो तुम कदापि न मिलना" इत्यादि कहकर मुझे नीचे उतर जाने के लिए कहा। (कुछ रुक कर) नहीं-नहीं, मैं भूलता हूँ, मुझे उन्होंने पहले ही नीचे उतार दिया था, क्योंकि सभी की गठरी मैंने ही नीचे से थामी थी, सभी को नीचे उतार देने के बाद जब मैं उनकी आज्ञानुसार पुनः ऊपर गया तब उन्होंने ये सब बातें मुझे समझाईं और आपके मित्र इन्द्रदेव भी वहाँ आ पहुँचे जो गोपालसिंह की सूरत बने हुए थे। इन्द्रदेव ने राजा गोपालसिंह से कुछ कहना चाहा, मगर उन्होंने रोक दिया और मुझसे कहा कि अब तुम भी कमंद के सहारे नीचे उतर जाओ और इन्द्रदेव के आने का इन्तजार करो। मैं उनकी आज्ञानुसार नीचे उतर आया। मैं अन्दाज से कहता हूँ कि उन बेहोशों में आप या छोटे कुमार छिपे थे और आप ही दोनों में से किसी ने मेरे बदन के साथ तिलिस्मी खंजर लगाया था जिससे मैं बेहोश हो गया।
इन्द्रजीतसिंह––हाँ, ठीक है ऐसा ही हुआ था।
भैरोंसिंह––फिर तो मैं बेहोश हो ही गया, मुझे कुछ भी नहीं मालूम कि इन्द्रदेव, जो गोपालसिंह की सूरत में थे, कब नीचे आये, क्या हुआ।
आनन्दसिंह––ठीक है, वह भी थोडी ही देर बाद नीचे उतरे और तुम्हारी तरह से वह भी बेहोश किए गए। (इन्द्रजीतसिंह से) अब मालूम हुआ कि इन्द्रदेव ही के कहे मुताबिक मैं आपको बुलाने के लिए ऊपर गया था।
भैरोंसिंह––हाँ, जब हम लोगों को उन्होंने चैतन्य किया तो कहा था कि दोनों कुमार ऊपर गए हैं। आखिर इन्द्रदेव ने कमन्द खींच ली और हम लोगों को लिए हुए दूसरी दीवार की तरफ गये। वहाँ कमलिनी ने जमीन खोद कर एक दरवाजा पैदा किया। ताज्जुब नहीं कि उसी दरवाजे की राह से आप लोग भी यहाँ तक आये हों, और अगर ऐसा है तो उस कोठरी में भी अवश्य पहुँचे होंगे जहाँ की जमीन लोगों को बेहोश करके तिलिस्म के अन्दर पहुँचा देती है?
आनन्दसिंह––हम लोग भी उसी रास्ते से यहाँ तक आये हैं, अच्छा तो क्या इन्द्र––