पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/५६

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देव भी तुम लोगों के साथ यहाँ आये हैं?

भैरोंसिंह––जी नहीं, वह तो ऊपर ही रह गये, बोले कि मुझे तिलिस्म के अन्दर जाने की आज्ञा नहीं है। तुम लोग जाओ। मैं अब इसी बाग में छिप कर रहूँगा। जब दोनों कुमार यहाँ आ जायेंगे तब उनसे छिप कर पुनः कमन्द के सहारे ऊपर जाऊँगा और राजा गोपालसिंह के साथ मिलकर काम करूँगा।

आनन्दसिंह––(इन्द्रजीतसिंह से) तब ताज्जुब नहीं कि इन्द्रदेव ने ही सरयू को बेहोश किया हो?

इन्द्रजीतसिंह––जरूर ऐसा ही है। (भैरों से) अच्छा तब क्या हुआ?

भैरोंसिंह––नीचे उतर कर जब हम लोग उस कोठरी में पहुँचे जहाँ की जमीन थोड़ी ही देर में लोगों को बेहोश कर देती है तब नियमानुसार सभी के साथ मैं भी बेहोश हो गया। उस समय से इस समय तक का हाल मुझे कुछ भी मालूम नहीं है, मैं बिल्कुल नहीं जानता कि उसके बाद क्या हुआ और मैं किस अवस्था में होकर क्यों इस तरह अपने को यहाँ पाता हूँ।


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भैरोंसिंह की बातें सुनकर दोनों कुमार देर तक तरह-तरह की बातें सोचते रहे और तब उन्होंने अपना किस्सा भैरोंसिंह से कह सुनाया। बुढ़िया वाली बात को सुनकर भैरोंसिंह हँस पड़ा और बोला, "मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं है कि वह बुढ़िया कौन है और कहाँ है, यदि अब मैं उसे पाऊँ तो जरूर उसकी बदमाशी का मजा उसे चखाऊँ। मगर अफसोस तो यह है कि मेरा ऐयारी का बटुआ मेरे पास नहीं है जिसमें बड़ी-बड़ी अनमोल चीजें थीं। हाय, वे तिलिस्मी फूल भी उसी बटुए में थे जिसके देने से मेरा बाप भी मुझे टाल बताना चाहता था मगर महाराज ने दिलवा दिया। इस समय बटुए का न होना मेरे लिए बड़ा दुखदायी है क्योंकि आप कह रहे हैं कि 'उन लड़कों ने एक तरह की बुकनी उड़ाकर हमें बेहोश कर दिया।' कहिए, अब मैं क्योंकर अपने दिल का हौसला निकाल सकता हूँ?"

इन्द्रजीतसिंह––निःसन्देह उस बटुए का जाना बहुत ही बुरा हुआ। वास्तव में उसमें बड़ी अनूठी चीजें थीं, मगर इस समय उनके लिए अफसोस जाहिर करना फिजूल है। हाँ, इस समय मैं दो चीजों से तुम्हारी मदद कर सकता हूँ।

भैरोंसिंह––वह क्या?

इन्द्रदेव––एक तो वह दवा हम दोनों के पास मौजूद है जिसके खाने से बेहोशी असर नहीं करती और वह मैं तुम्हें खिला सकता हूँ। दूसरे हम लोगों के पास दो-दो हर्बे मौजूद हैं, बल्कि यदि तुम चाहो तो तिलिस्मी खंजर भी दे सकता हूँ।

भैरोंसिंह––जी नहीं, तिलिस्मी खंजर मैं न लूँगा, क्योंकि आपके पास उसका