पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/६१

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बारहदरी के सामने वाली इमारत दोमंजिली थी और उसकी लम्बाई तो बहुत ज्यादा मगर चौड़ाई बहुत कम थी। इमारत की ऊपर वाली मंजिल में बाग की तरफ छोटे-छोटे दरवाजे एक सिरे से दूसरे सिरे तक बराबर एक ही रंग-ढंग के बने हुए थे। दरवाजों के बीच में केवल एक खम्भे का फासला था और वे खम्भे भी सब एक ही ढंग के नक्काशीदार बने हुए थे जिसकी खूबी इस समय कुछ भी मालूम नहीं पड़ती थी मगर एक दरवाजे के अन्दर यकायक कुछ रोशनी की झलक पड़ जाने के कारण भैरोंसिंह एकटक उसी तरफ देख रहे थे।

थोड़ी ही देर बाद ऊपर वाली मंजिल का एक दरवाजा खुला और पीठ पर गठरी लादे हुए एक आदमी बाईं तरफ से दाहिनी तरफ जाता हुआ दिखाई दिया। भैरोंसिंह चैतन्य होकर सम्हलकर बैठ गये और बड़ी दिलचस्पी के साथ ध्यान देकर उस तरफ देखने लगे। कुछ देर बाद दरवाजा बन्द हो गया और उसके दाहिनी तरफ चार दरवाजे छोड़कर पांचवाँ दरवाजा खुला जिसके अन्दर हाथ में चिराग लिए हुए एक और आदमी इस तरह खड़ा दिखाई दिया जैसे किसी के आने का इन्तजार कर रहा हो। थोड़ी ही देर में चार-पाँच औरतें मिलकर किसी लटकते बोझ को लिए हुए उसी आदमी के पास से निकल गई जिसके हाथ में चिराग था और उन्हीं के पीछे-पीछे वह आदमी भी चिराग लिए चला गया। दरवाजा बन्द नहीं हुआ मगर उसके अन्दर अन्धकार हो गया।

भैरोंसिंह ने यह समझकर कि शायद हम और भी कुछ तमाशा देखें दोनों कुमारों को चैतन्य कर दिया और जो कुछ देखा था, बयान किया।

हम कह आये है कि इस बारहदरी की पिछली दीवार के नीचे बीचोंबीच में अर्थात् चबूतरे के सामने एक छोटा दरवाजा था जिसके अन्दर भैरोंसिंह ने जाने का इरादा किया था। इस समय यकायक उसी दरवाजे के अन्दर चिराग की रोशनी देखकर भैरोंसिंह और दोनों कुमार चौंक पड़े और उठकर दरवाजे के सामने जा झाँककर देखने लगे। मालूम हुआ कि इस छोटे से दरवाजे के अन्दर एक बहुत बड़ा कमरा है जिसके दोनों तरफ की लोहे वाली शहतीरें (बड़ी धरने) बड़े-बड़े चौखूटे खम्भों के ऊपर हैं और उसकी छत लदाव की बनी हुई है। उस कमरे के दोनों तरफ के खम्भों के बाद भी एक दालान बना है और दालान की दीवारों में कई बड़े दरवाजे बने हैं जिनमें कुछ खुले और कुछ बन्द हैं।

दोनों कुमारों और भैरोंसिंह ने देखा कि उसी कमरे के मध्य में एक आदमी जिसके चेहरे पर नकाब पड़ी थी, हाथ में चिराग लिए हुए खड़ा छत की तरफ देख रहा है। कुछ देर तक देखने के बाद वह आदमी एक खम्भे के सहारे चिराग रखकर पीछे की तरफ लौट गया।

भैरोंसिंह और दोनों कुमार आड़ में खड़े होकर सब तमाशा देख रहे थे और जब वह आदमी चिराग रखकर हट गया तब भी यह सोचकर खड़े ही रहे कि जब चिराग रखकर गया है तो पुन आवेगा।

उस नकाबपोश को चिराग रखकर गये हुए दस-बारह पल से ज्यादा न बीते होंगे कि दूसरी तरफ वाले दरवाजे के अन्दर से कोई दूसरा आदमी निकलकर तेजी से साथ इस कमरे के मध्य में आ पहुँचा और हाथ की हवा देकर उस चिराग को बुझा दिया जिसे