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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/६५

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ही क्रोध आया और उसने ऐयारी के सामान से लैस होकर अकेले ही अपनी स्त्री का पीछा किया।

नानक ने यद्यपि किसी कारण से लोकलाज को तिलांजलि दे दी थी मगर ऐयारी को नहीं। उसे अपनी ऐयारी पर बहुत भरोसा था और वह दस-पाँच आदमियों में अकेला घुस कर लड़ने की हिम्मत भी रखता था। यही सबब था कि उसने किसी संगी-साथी का खयाल न करके अकेले ही श्यामारानी का पीछा किया, हाँ यदि उसे यह मालूम होता कि श्यामारानी का उपपति तारासिंह है तो कदापि अकेला न जाता।

नानक औरत के वेष में घर से बाहर निकला और जब उस मकान के पास पहुँचा जिसमें तारासिंह ने डेरा डाला था, तो कमन्द लगा कर मकान के ऊपर चढ़ गया और धीरे-धीरे उस कोठरी के पास जा पहुँचा जिसके अन्दर तारासिंह और श्यामारानी थी और बाहर तारासिंह का चेला और नानक का नौकर हनुमान हिफाजत कर रहा था। वहाँ पहुँचते ही उसने एक लात अपने नौकर की कमर में ऐसी जमाई कि वह तिलमिला गया और जब वह चिल्लाया तो उसे चिढ़ाने की नीयत से नानक स्वयं भी औरतों ही की तरह चिल्ला उठा।

यही वह चिल्लाने की आवाज थी जिसे कोठरी के अन्दर बैठे हुए तारासिंह और श्यामा ने सुना था। चिल्लाने की आवाज सुनते ही तारासिंह उठ खड़ा हुआ और हाथ में खंजर लिए कोठरी के बाहर निकला। वहाँ अपने चेले और हनुमान के अतिरिक्त एक औरत को खड़ा देख वह ताज्जुब करने लगा और उसने औरत अर्थात् नानक से पूछा, "तू कौन है?"

नानक––पहले तू ही बता कि तू कौन है जिसमें तुझे मार डालने के बाद यह तो मालूम रहे कि मैंने फलाने को मारा था।

तारासिंह––तेरी ढिठाई पर मुझे ताज्जुब ही नहीं होता, बल्कि यह भी मालूम होता है कि तू औरत नहीं, कोई ऐयार है!

नानक––(गम्भीरता के साथ) बेशक मैं ऐयार हूँ तभी तो अकेले तेरे घर में घुस आया हूँ! शैतान, तू नहीं जानता कि बुरे कर्मों का फल क्योंकर मिलता है और वह कितना बड़ा ऐयार है जिसकी स्त्री को तूने धोखा देकर बुला लिया है!

तारासिंह––(जोर से हँस कर) अ ह ह ह! अब मुझे पूरा विश्वास हो गया कि बेहया नानक तू ही है और शायद अपनी पतिव्रता की आमदनी गिनने के लिए यहाँ आ पहुँचा है। अच्छा तो अब तुझे यह भी जान लेना चाहिए कि जिसका तू मुकाबला कर रहा है उसका नाम तारासिंह है और वह राजा वीरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार तेरे चालचलन की तहकीकात करने आया है।

तारासिंह और राजा वीरेन्द्रसिंह का नाम सुनते ही नानक सन्न हो गया। उधर उसकी स्त्री ने जब यह जाना कि इस कोठरी के बाहर उसका पति खड़ा है, तो वह नखरे से रोने और पीटने लगी तथा यह कहती हुई कोठरी के बाहर निकल कर नानक के पैरों पर गिर पड़ी कि मुझे तो तुम्हारा नाम लेकर हनुमान यहाँ ले आया है।