पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/६६

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नानक थोड़ी देर तक तो सन्नाटे में रहा, इसके बाद तारासिंह की तरफ देख के बोला।

नानक––क्या ऐयारों का यही धर्म है कि दूसरों की औरतों को खराब करें और बदकारी का धब्बा अपने नाम के साथ लगावें!

तारासिंह––नहीं-नहीं, ऐयारों का यह काम नहीं है, और ऐयारों को यह भी उचित नहीं है कि सब तरफ का खयाल छोड़ केवल औरत की कमाई पर गुजारा करें। मैंने तेरी औरत को किसी बुरी नीयत से नहीं बुलाया बल्कि चालचलन का हाल जानने के लिए ऐसा किया है। जो बातें तेरे बारे में सुनी गई हैं और जो कुछ यहाँ आने पर मैंने मालूम की हैं उनसे जाना जाता है कि तू बड़ा ही कमीना और नमकहराम है। नमकहराम इसलिए कि मालिक के काम की तुझे कुछ भी फिक्र नहीं है और इसका सबूत केवल मनोरमा ही बहुत है जिसके साथ तू शादी किया चाहता था और जिसने जूतियों से तेरी पूजा ही नहीं की बल्कि तिलिस्मी खंजर भी तुझसे ले लिया।

नानक––यह कोई आवश्यक नहीं है कि ऐयारों का काम सदैव पूरा ही उतरा करे, कभी धोखा खाने में न आवे! यदि मनोरमा की ऐयारी मुझ पर चल गई तो इसके बदले में कमीना और नमकहराम कहे जाने लायक मैं नहीं हो सकता। क्या तुमने और तुम्हारे बाप ने कभी धोखा नहीं खाया? और मेरी स्त्री को जो तुम बदनाम कर रहे हो, वह तुम्हारी भूल है। वह तो खुद कह रही है कि 'मुझे तो तुम्हारा नाम लेकर हनुमान यहाँ ले आया है।' मेरी स्त्री बदकार नहीं है बल्कि वह साध्वी और सती है, असल में बदमाश तू है जो इस तरह धोखा देकर पराई स्त्री को अपने घर में बुलाता है और मुझे यहाँ पर अकेला जान कर गालियाँ देता है, नहीं तो मैं तुझसे किसी बात में कम नहीं हूँ।

तारासिंह––नहीं-नहीं, तू बहुत बातों में मुझसे बढ़ के है, और मैं भी अकेला समझ तुझे गालियाँ नहीं देता बल्कि दोषी जान कर गालियाँ देता हूँ। तू अपनी स्त्री को साध्वी सती छोड़ के चाहे माता से भी बढ़ कर समझ ले, मेरी कोई हानि नहीं है। मैं वास्तव में जिस काम के लिए आया था उसे कर चुका, अब यहाँ से जाकर मालिक से सब कह दूँगा और तेरे गम्भीर स्वभाव की प्रशंसा भी करूँगा, जिसे सुनकर तेरा बाप बहुत ही प्रसन्न होगा जो अपनी एक भूल के कारण हद से ज्यादे पछता रहा है और बदनामी का टीका मिटाने के लिए जी-जान से उद्योग कर रहा है मगर तुझ कपूत के मारे कुछ भी करने नहीं पाता। (हँस कर) ऐसी कुलटा स्त्री को सती और साध्वी समझने वाला अपने को ऐयार कहे, यही आश्चर्य है।

नानक––मेरे ऐयार होने में तुम्हें कुछ शक है?

तारासिंह––कुछ? अजी, बिल्कुल शक है!

नानक––यदि तुम ऐसा समझ भी लो तो इसमें मेरी कुछ हानि नहीं है, इससे ज्यादा तुम और कुछ भी नहीं कर सकते कि यहाँ से जाकर राजा वीरेन्द्रसिंह से मेरी झूठी शिकायतें करो मगर इस बात को भी समझ लो कि मैं किसी का ताबेदार नहीं हूँ।

तारासिंह––(क्रोध से) तू किसी का ताबेदार नहीं है?

तारासिंह को क्रोधित देखकर नानक डर गया, केवल इसलिए कि इस जगह