पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/७२

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वह दूर निकल गया तो तारासिंह अपने दरवाजे पर आया और शागिर्दो को चैतन्य पाने पर समझ गया कि दुश्मन ने उसके आदमी को बेहोशी की दवा नहीं सुँघाई थी। तारासिंह के दोनों शागिर्द उठे, मगर तारासिंह उन्हें उसी तरह लेटे रहने की आज्ञा देकर अपने कमरे के अन्दर चला गया और भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया। रोशनी करने के बाद तारासिंह ने देखा कि दुश्मन ने उसकी कोई चीज नहीं चुराई है, वह केवल उस सिपाही को उठाकर ले गया है जिसे तारासिंह अपनी सूरत का सौदागर बनाकर अपनी जगह लिटा आया था। तारासिंह अपनी कार्रवाई पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कमरे के बाहर निकलकर अपने शागिर्दो को उठाया और कहा, 'हमारा मतलब सिद्ध हो गया, अब इसमें कोई सन्देह नहीं कि कम्बख्त नानक अपनी मुराद पूरी हो गई समझ के इसी समय सराय का फाटक खुलवाकर निकल जायगा और मैं भी ऐसा ही चाहता हूँ, अस्तु अब उचित है कि तुम दोनों में से एक आदमी तो यहाँ पहरा दे और एक आदमी सराय के फाटक की तरफ जाय और छिपकर मालूम करे कि नानक कब सराय के बाहर निकलता है। जिस समय वह सराय के बाहर हो उसी समय मुझे इत्तिला मिले।"

इतना कहकर तारासिंह कमरे के अन्दर चला गया और भीतर से दरवाजा बन्द कर लेने के बाद कमरे की छत पर चढ़ गया, इसलिए कि वह कमरे के ऊपर से अपने मतलब की बात बहुत-कुछ देख सकता था।

इस समय नानक की खुशी का कोई ठिकाना न था। वह समझे हुए था कि हमने तारासिंह को गिरफ्तार कर लिया, अस्तु जहाँ तक जल्द हो सके सराय के बाहर निकल जाना चाहिए। इसी खयाल से उसने अपना डेरा कूच कर दिया और सराय के फाटक पर आकर जमादार को बहुत-कुछ कह-सुनकर याद दिला के दरवाजा खुलवाया और बाहर हो गया।

तारासिंह को जब मालूम हुआ कि नानक सराय के बाहर निकल गया तब उसने यहाँ चोरी हो जाने की खबर मशहूर करने का बन्दोबस्त किया। उसके पास जो सन्दुक थे, जिनमें कीमती माल होने का लोगों या जमादार को गुमान था, उनका ताला तोड़कर खोल दिया क्योंकि वास्तव में सन्दूक विल्कुल खाली केवल दिखाने के लिए थे। इसके बाद अपने नौकरों को होशियार किया और खूब रोशनी करके 'चोर'-'चोर' का हल्ला मचाया और जाहिर किया कि हमारी लाखों रुपये की चीज (जवाहिरात) चोरी हो गई।

चोरी की खबर सुन बेचारा जमादार दौड़ा हुआ तारासिंह के पास आया जिसे देखते ही तारासिंह ने रोनी सूरत बनाकर कहा, "देखो जमादार, मैं पहले ही कहता था कि मेरे असवाब की खूब हिजाजत होनी चाहिए! आखिर मेरे यहाँ चोरी हो ही गयी! मालूम होता है कि तुम्हारे सिपाही ने मिल कर चोरी करवा दी क्योंकि तुम्हारा सिपाही दिखायी नहीं देता। कहो, अब हम अपने लाखों रुपये के माल का दावा किस पर करें?"

तारासिंह की बात सुनते ही जमादार के तो होश उड़ गए। उसने टूटे हुए सन्दूकों को भी अपनी आँखों से देख लिया और खोज करने पर उस सिपाही को भी न पाया जिसका इस समय पहरे पर मौजूद रहना वाजिब था। यद्यपि जमादार ने उसी समय सिपाहियों को फाटक पर होशियार रहने का हुक्म दे दिया मगर इस बात का उसे बहुत