भी न निकलेगा तो भी हम यही समझेंगे कि सराय से बाहर दूर जाकर इसने किसी ठिकाने चोरी का माल गाड़ दिया है।
दीवान––बेशक, ऐसा ही है! (जमादार से) अच्छा जो कुछ हुक्म दिया गया है उसे जल्द पूरा करो।
जमादार––जो आज्ञा।
बात की बात में वह सराय मुसाफिरों से खाली हो गई। नानक हवालात में भेज दिया गया और उसका असबाब एक कोठरी में रखकर ताली दीवान साहब को दे दी गई। उस समय तारासिंह के दोनों शागिर्दो ने दीवान साहब से कहा––"इस शैतान का मामला दो-एक दिन में निपटता नजर नहीं आता, इसलिए हम लोग भी चाहते हैं कि यहाँ से जाकर अपने मालिक को इस मामले की खबर दें और उन्हें भी सरकार के पास ले आवें, अगर ऐसा न करेंगे तो मालिक की तरफ से हम लोगों पर बड़ा दोष लगाया जायगा। यदि आप चाहें तो जमामत में हमारा माल-असबाब रख सकते हैं।"
दीवान––तुम्हारा कहना बहुत ठीक है। हम खुशी से इजाजत देते हैं कि तुम लोग जाओ और अपने मालिक को ले आओ, जमानत में तुम लोगों का माल-असबाब रखना हम मुनासिब नहीं समझते, इसे तुम लोग साथ ही ले जाओ
तारासिंह के दोनों शागिर्द––(दीवान साहब को सलाम करके) आपने बड़ी कृपा की जो हम लोगों को जाने का आज्ञा दे दी। हम लोग बहुत ही जल्द अपने मालिक को लेकर हाजिर होंगे।
तारासिंह के दोनों शागिर्दो ने भी डेरा कूच कर दिया और बेचारे नानक को खटाई में डाल गए। देखना चाहिए अब उस पर क्या गुजरती है। वह भी इन लोगों से बदला लिए बिना रहता नजर नहीं आता।
4
भैरोंसिंह के चले जाने के बाद दरवाजा बन्द हो जाने से दोनों कुमारों को ताज्जुब ही नहीं हुआ बल्कि उन्हें भैरोंसिंह की तरफ से एक प्रकार की फिक्र लग गई। आनन्दसिंह ने अपने बड़े भाई की तरफ देखकर कहा, "अब इस रात के समय भैरोंसिंह के लिए हम लोग क्या कर सकते हैं?"
इन्द्रजीतसिंह––कुछ भी नहीं। मगर भैरोंसिंह के हाथ में तिलिस्मी खंजर है, वह यकायक किसी के कब्जे में न आ सकेगा।
आनन्दसिंह––पहले भी तो उनके पास तिलिस्मी खंजर था, बल्कि ऐयारी का बटुआ भी मौजूद था, तब उन्होंने क्या कर लिया था?
इन्द्रजीतसिंह––सो तो ठीक कहते हो, तिलिस्म के अन्दर हर तरह से बचे रहना मामूली काम नहीं है, मगर रात के समय अब हो ही क्या सकता है?