पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/८८

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जिनकी डालियाँ ऊपर से मिली हुई थीं कि उनकी सुन्दर छाया में छिपा हुआ वह छोटा सा पुल बहुत खूबसूरत और स्थान बड़ा रमणीक मालूम होता था। इस जगह से न तो दोनों कुमार उन औरतों को देख सकते थे और न उन औरतों की निगाह इन पर पड़ सकती थी।

जब दोनों कुमार पुल की राह पार उतरकर और घूम-फिरकर उस जगह पहुँचे जहाँ उन औरतों को छोड़ आये थे, केवल दो औरतों को मौजूद पाया, जिनमें से एक तो वही थी जिससे कुँअर इन्द्रजीतसिंह से बातचीत हुई थी और दूसरी उससे उम्र में कुछ कम मगर खूबसूरती में कुछ ज्यादा थी। बाकी औरतों का पता न था कि क्या हुई और कहाँ गई। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने ताज्जुब में आकर उस औरत से, जिसने पुल की राह इधर आने का उपदेश किया था पूछा "यहाँ तुम दोनों के सिवाय और कोई नहीं दिखाई देता, सब कहाँ चली गईं?"

औरत––आपको उन औरतों से क्या मतलब?

इन्द्रजीतसिंह––कुछ नहीं, यों ही पूछता हूँ।

औरत––(मुस्कराती हुई) वे सब आप दोनों भाइयोंकी मेहमानदारी का इन्तजाम करने चली गईं, अब आप मेरे साथ चलिए।

इन्द्रजीतसिंह––कहाँ ले चलोगी?

औरत––जहाँ मेरी इच्छा होगी। जब आपने मेरी मेहमानी कबूल ही कर ली तब···।"

इन्द्रजीतसिंह––खैर, अब इस किस्म की बातें न पूछूँगा और जहाँ ले चलोगी चला चलूँगा।

औरत––(मुस्कराकर) अच्छा तो आइए।

दोनों कुमार उन दोनों औरतों के पीछे-पीछे रवाना हुए। हम कह चुके हैं कि जहाँ ये औरतें बैठी थीं वहाँ से थोड़ी ही दूर पर एक छोटा-सा मकान बना हुआ था। वे दोनों औरतें कुमारों को लिए उसी मकान के दरवाजे पर पहुँचीं जो इस समय बन्द था मगर कोई जंजीर कुण्डा या ताला उसमें दिखाई नहीं देता था। कुमारों को यह भी मालूम न हुआ कि किस खटके को दबाकर या क्योंकर उसने वह दरवाजा खोला। दरवाजा खुलने पर उस औरत ने पहले दोनों कुमारों को उसके अन्दर जाने के लिए कहा, जब दोनों कुमार उसके अन्दर चले गए तब उन दोनों ने भी दरवाजे के अन्दर पैर रखा और इसके बाद हलकी आवाज के साथ वह दरवाजा आप-से-आप बन्द हो गया। इस समय दोनों कुमारों ने अपने को एक सुरंग में पाया जिसमें अन्धकार के सिवाय और कुछ दिखाई नहीं देता था और जिसकी चौड़ाई तीन हाथ और ऊँचाई चार हाथ से किसी तरह ज्यादा न थी। इस जगह कुमार को इस बात का खयाल हुआ कि कहीं इन औरतों ने मुझे धोखा तो नहीं दिया मगर यह सोचकर चुप रह गये कि अब तो जो कुछ होना था हो ही गया और ये औरतें भी तो आखिर हमारे साथ ही हैं जिनके पास किसी तरह का हर्बा देखने में नहीं आया था।

दोनों कुमारों ने अपना हाथ पसारकर दीवार को टटोला और मालूम किया कि