पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/८७

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दोनों कुमारों को ऊपर से दिखाई नहीं दिया था मगर अब नहर के किनारे आ जाने पर बखूबी दिखाई दे रहा था।

वे औरतें जिन्हें नहर के किनारे कुमार ने देखा था, सबकी-सब नौजवान और हसीन थीं। यद्यपि इस समय से वे सब बनाव-शृंगार और जेवरों के ढकोसलों से खाली थीं मगर उनका कुदरती हुस्न ऐसा न था जो किसी तरह की खूबसूरती को अपने सामने ठहरने देता। यहाँ पर यदि ऐसी एक औरत होती तो हम उसकी खूबसूरती के बारे में कुछ लिखते भी मगर एकदम से सात ऐसी औरतों की तारीफ में कलम चलाना हमारी ताकत के बाहर है जिन्हें प्रकृति ने खूबसूरत बनाने के समय हर तरह पर अपनी उदारता का नमूना दिखाया हो।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने जब उन औरतों को अपनी तरफ क्रोध-भरी निगाहों से देखते देखा तो एक औरत से मुलायम और गम्भीर शब्दों में कहा, "हम लोग तुम्हारे पास किसी तरह की तकलीफ देने की नीयत से नहीं आए हैं, बल्कि यह कहने के लिए आए हैं कि किस्मत ने हम लोगों को अकस्मात् यहाँ पहुँचाकर तुम लोगों का मेहमान बनाया है। हम लोग लाचार और राह भूले हुए मुसाफिर हैं और तुम लोग यहाँ की रहने वाली और दयावान् हो, क्योंकि जिस ईश्वर ने तुम्हें इतना सुन्दर बनाकर अपनी कारीगरी का नमूना दिखाया है उसने तुम्हारे दिल को कठोर बनाकर अपनी भूल का परिचय कदापि न दिया होगा, अतएव उचित है कि तुम लोग ऐसे समय में हमारी सहायता करो और बताओ कि अब हम दोनों भाई क्या करें और कहाँ जायें?"

औरतें खुशामद-पसन्द तो होती ही हैं! कुँअर इन्द्रजीतसिंह की मीठी और खुशामद भरी बातें सुनकर उन सभी की चढ़ी हुई त्यौरियाँ उतर गईं और होंठों पर कुछ मुस्कराहट दिखाई देने लगी। एक ने जो सबसे चतुर चंचल और चालाक जान पड़ती थी, आगे बढ़कर कुँअर इन्द्रजीतसिंह से कहा, "जब आप हमारे मेहमान बनते हैं और इस बात का विश्वास दिलाते हैं कि हमारे साथ दगा न करेंगे तो हम लोग भी निःसन्देह आपको अपना मेहमार स्वीकार करके जहाँ तक हो सकेगा आपकी सहायता करेंगी, अच्छा ठहरिए हम लोग जरा आपस में सलाह कर लें!"

इतना कहकर वह चुप हो गईं। उन लोगों ने आपस में धीरे-धीरे कुछ बातें की, और इसके बाद फिर उसी औरत ने इन्द्रजीतसिंह की तरफ देखकर कहा––

औरत––(हाथ का इशारा करके) उस तरफ एक छोटा-सा पुल बना हुआ है, उसी पर से होकर आप इस पार चले आइए।

इन्द्रजीतसिंह––क्या इस नहर में पानी बहुत ज्यादा है?

औरत––पानी तो ज्यादा नहीं है, मगर इसमें लोहे के तेज नोक वाले गोखरू बहुत पड़े हैं इसलिए इस राह से आपका आना सम्भव नहीं है।

इन्द्रजीतसिंह––अच्छा, तो हम पुल पर से होकर आयेंगे।

इतना कह कुमार उस तरफ रवाना हुए जिधर उस औरत ने हाथ के इशारे से पुल को बताया था। थोड़ी दूर जाने के बाद एक गूंजान और खुशनुमा झाड़ी के अन्दर वह छोटा-सा पुल दिखाई दिया। इस जगह नहर के दोनों तरफ पारिजात के कई पेड़ थे