का राज्य छोड़ दिया था, मगर माधवी के इश्क ने उसके दिल में से अपना दखल नहीं उठाया था।
माधवी की बिगड़ी हुई अवस्था देखकर भी उसकी मुहब्बत से हाथ न धोने के दो सबब थे एक तो माधवी वास्तव में खूबसूरत हसीन और नाजुक थी, दूसरे राजगृह और गया के राज्य से खारिज हो जाने पर भी वह माधवी को अमीर और बेहिसाब दौलत की मालिक समझता था और इसलिए वह समय पर ध्यान रखकर माधवी के हाल-चाल की बराबर खबर लेता रहा और वक्त पर काम देने के लिए थोड़ी-सी फौज का मालिक भी बना रहा।
मनोरमा के गिरफ्तार हो जाने के बाद शिवदत्त और कल्याणसिंह के साथ जब माधवी रोहतासगढ़ की तराई में पहुँची तो वहाँ एक आदमी ने गुप्त रीति से उसे एक चिट्ठी दी और जल्द उसका जवाब माँगा। यह चिट्ठी कुवेरसिंह की थी और उसमें यह लिखा हुआ था––
"मुझे आपकी अवस्था पर बहुत रंज और अफसोस है। यद्यपि आपकी हालत बदल गई है और आप मुझसे बहुत दूर हैं, मगर मैं अभी तक आपकी खयाली तस्वीर अपने दिल के अन्दर कायम रखकर दिन-रात उसकी पूजा किया करता हूँ। यही सबब है कि बहुत दिनों तक मेहनत करके मैंने इतनी ताकत पैदा कर ली है कि आपकी मदद कर सकूँ और आपको पुनः राजगृह की गद्दी का मालिक बनाऊँ। आप अपने ही दिल से पूछ देखिये कि अग्निदत्त, जिसके साथ आपने सब-कुछ किया, कैसा बेईमान और बेमुरौवत निकला और मैं, जिसे आपने हद से ज्यादा तरसाया कैसी हालत में आपकी मदद करने को तैयार हूँ! यदि आप मुनासिब समझें तो इस आदमी के साथ मेरे पास चलीं आवें या मुझको अपने पास बुला लें। यह आदमी जो चिट्ठी लेकर जाता है मेरा ऐयार है।
आपका––कुबेर।"
माधवी ने उस चिट्ठी को बड़े गौर से दोहरा कर पढ़ा और देर तक तरह-तरह की बातें सोचती रही। हम नहीं जानते कि उसका दिल किन-किन बातों का फैसला करता रहा या वह किस विचार में देर तक डूबी रही, हाँ थोड़ी देर बाद उसने सिर उठा चिट्ठी लाने वाले की तरफ देखा और कहा, "कुबेरसिंह कहाँ पर है?"
ऐयार––यहाँ से थोड़ी दूर पर
माधवी––फिर वह खुद यहाँ क्यों न आया?
ऐयार––इसीलिए कि आप इस समय दूसरों के साथ हैं जिन्होंने आपको न मालूम किस तरह का भरोसा दिया होगा या आप ही ने शायद उनसे किस तरह का इकरार किया हो, ऐसी अवस्था में आपसे दरियाफ्त किये बिना इस लश्कर में आना उन्होंने मुनासिब नहीं समझा।
माधवी––ठीक है, अच्छा तुम जाकर उसे बहुत जल्द मेरे पास ले आओ। कितनी देर में आओगे?
ऐयार––(सलाम करके) आधे घंटे के अन्दर।