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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/१०

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वह ऐयार तेजी के साथ दौड़ता हुआ वहाँ से चला गया और माधवी उसी जगह टहलती हुई उसका इन्तजार करने लगी।

दिन आधे घंटे से कुछ ज्यादा बाकी था और इस समय माधवी कुछ खुश मालूम होती थी। शिवदत्त और कल्याणसिंह का लश्कर एक जंगल में छिपा हुआ था और माधवी अपने डेरे से निकल कर सौ सवा सौ कदम की दूरी पर चली गई थी। माधवी कुबेरसिंह के अक्षर अच्छी तरह पहचानती थी इसलिए उसे किसी तरह का धोखा खाने का शक कुछ भी न हुआ और वह बेखौफ उसके आने का इन्तजार करने लगी।

संध्या होने के पहले ही उसी ऐयार को साथ लिए हुए कुबेरसिंह माधवी की तरफ आता दिखाई दिया जो थोड़ी ही देर पहले उसकी चिट्ठी लेकर आया था। उस समय वह ऐयार भी एक घोड़े पर सवार था और कुबेरसिंह अपनी सूरत-शक्ल तथा हैसियत को अच्छी तरह सजाये हुए था। माधवी के पास पहुँच कर दोनों आदमी घोड़े से नीचे उतर पड़े और कुबेरसिंह ने माधवी को सलाम करके कहा, "आज बहुत दिनों के बाद ईश्वर ने मुझे आपसे मिलाया! मुझे इस बात का बहुत रंज है कि आपने लौंडियों के भड़काने पर चुपचाप घर छोड़कर जंगल का रास्ता ले लिया और अपने खैरख्वाह कुबेरसिंह (हम) को याद तक न किया। मैं खूब जानता हूँ कि आपने दीवान अग्निदत्त से डर कर ऐसा किया था मगर उसके बाद भी तो मुझे याद करने का मौका जरूर मिला होगा।"

माधवी––(मुस्कुराती हुई कुबेरसिंह का हाथ पकड़ के) मैं घर से निकलने के बाद ऐसी मुसीबत में पड़ गयी थी कि अपनी भलाई-बुराई पर कुछ भी ध्यान न दे सकी, और जब मैंने सुना कि गया और राजगृह में वीरेन्द्रसिंह का राज्य हो गया तब और भी हताश हो गई, फिर भी मैं अपने उद्योग की बदौलत बहुत-कुछ कर गुजरती, मगर गयाजी में अग्निदत्त की लड़की कामिनी ने मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया और मुझे किसी लायक न रक्खा। (अपनी कटी हुई कलाई दिखाकर) यह उसी की बदौलत है।

कुबेरसिंह––वह खानदान का खानदान ही नमकहराम निकला और इसी फेर में अग्निदत्त मारा भी गया।

माधवी––हाँ, उसके मरने का हाल मायारानी की सखी मनोरमा की जुबानी मैंने सुना था। (पीछे की तरफ देखकर) कौन आ रहा है?

कुबेरसिंह––आप ही के लश्कर का कोई आदमी है, शायद आपको बुलाने आता हो, नहीं वह दूसरी तरफ घूम गया, मगर अब आपको कुछ सोच-विचार करना, किसी से मिलना या इस जगह खड़े-खड़े बातों में समय नष्ट न करना चाहिए और यह मौका भी बातचीत करने का नहीं है। आप (घोड़े की तरफ इशारा करके) इस घोड़े पर शीघ्र सवार होकर मेरे साथ चली चलें, मैं आपका ताबेदार सब लायक और सब कुछ करने के लिए तैयार हूँ, फिर किसी की खुशामद की जरूरत ही क्या है? यदि कल्याणसिंह के लश्कर में आपका कुछ असबाब हो तो उसकी परवाह न कीजिए।

माधवी––नहीं, अब मुझे किसी की परवाह नहीं रही, मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूँ।