पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 5.djvu/९६

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लिए कहा मगर इस जगह वह स्वयं पीछे हो गया और मुझे आगे चलने के लिए बोला। उसकी इस बात से मुझे शक पैदा हुआ, मैंने उससे कहा कि "जिस तरह अभी तक तुम मेरे आगे-आगे चलते आये हो उसी तरह अब भी इस मकान के अन्दर क्यों नहीं चलते? मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चला चलूँगा।" इसके जवाब में पीले मकरन्द ने सिर हिलाया और कुछ कहा ही चाहता था कि मेरे पीछे की तरफ से आवाज आई, "ओ भैरोसिंह, खबरदार! इस मकान के अन्दर पैर न रखना, और इस पीले मकरन्द को पकड़ रखना, भागने न पावे!"

मैं घूमकर पीछे की तरफ देखने लगा कि यह आवाज देने वाला कौन है। इतने ही में इस इन्द्रानी पर मेरी निगाह पड़ी जो तेजी के साथ चलकर मेरी तरफ आ रही थी। पलट कर मैंने पीले मकरन्द की तरफ देखा तो उसे मौजूद न पाया, न मालूम वह यकायक क्योंकर गायब हो गया। जब इन्द्रानी मेरे पास पहुँची तो उसने कहा, "तुमने बड़ी भूल की जो उस शैतान मकरन्द को पकड़ न लिया। उसने तुम्हरे साथ धोखेबाजी की। बेशक वह तुम्हारे बटुए की लालच में तुम्हारी जान लिया चाहता था। ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए कि मुझे खबर लग गई और मैं दौड़ी हुई यहाँ तक चली आई। वह कम्बख्त मुझे देखते ही भाग गया।"

इन्द्रानी की बात सुनकर मैं ताज्जुब में आ गया और उसका मुँह देखने लगा। सबसे ज्यादा ताज्जुब तो मुझे इस बात का था कि इन्द्रानी जैसी खूबसूरत और नाजुक औरत को देखते ही वह शैतान मकरन्द भाग क्यों गया? इसके अतिरिक्त देर तक तो मैं इन्द्रानी की खूबसूरती ही को देखता रह गया। (मुस्कुरा कर) माफ कीजिए, बुरा न मानियेगा, क्योंकि मैं सच कहता हूँ कि इन्द्रानी को मैंने किशोरी से भी बढ़कर खूबसूरत पाया। सुबह के सुहावने समय में उसका चेहरा दिन की तरह दमक रहा था!

इन्द्रजीतसिंह––यह तुम्हारी खुशनसीबी थी कि सुबह के वक्त ऐसी खूबसूरत औरत का मुँह देखा।

भैरोंसिंह––उसी का यह फल मिला कि जान बच गई और आपसे मिल सका।

इन्द्रजीतसिंह––खैर, तब क्या हुआ?

भैरोंसिंह––मैंने धन्यवाद देकर इन्द्रानी से पूछा कि "तुम कौन हो और यह मकरन्द कौन था?" इसके जवाब में इन्द्रानी ने कहा कि "यह तिलिस्म है, यहाँ के भेदों को जानने का उद्योग न करो। जो कुछ आप-से-आप मालूम होता जाय, उसे समझते जाओ। इस तिलिस्म में तुम्हारे दोस्त और दुश्मन बहुत हैं, अभी तो आए हो, दो-चार दिन में बहुत सी बातों का पता लग जाएगा, हाँ, अपने बारे में मैं इतना जरूर कहूँगी कि इस तिलिस्म की रानी हूँ और तुम्हें तथा दोनों कुमारों को अच्छी तरह जानती हूँ।"

इन्द्रानी इतना कहके चुप हो गई और पीछे की तरफ देखने लगी। उसी समय और भी चार-पाँच औरतें वहाँ आ पहुँची जो खूबसूरत कमसिन और अच्छे गहने-कपड़े पहने हुए थीं। मैंने किशोरी कामिनी वगैरह का हाल इन्द्रानी से पूछना चाहा, मगर उसने बात करने की मोहलत न दी और यह कहकर मुझे एक और के सुपुर्द कर दिया दि "यह तुम्हें कुँअर इन्द्रजीतसिंह के पास पहुँचा देगी।" इतना कहकर बाकी औरतों