पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१०३

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भूतनाथ--वह क्या?

गोपालसिंह--यही कि ये दोनों अगर खाली हाथ न होते तो बेचारी शान्ता को जान से मार डालते।

इतने ही में नानक बोल उठा, "नही-नहीं, यह आपके जासूसों ने हमारे ऊपर झूठा इलजाम लगाया है!"

भूतनाथ--अगर यह बात है तो मैं इसे हथकड़ी से खाली क्यों देखता हूँ?

इन्द्रदेव--इसीलिए कि हमारे हाते के अन्दर ये लोग कुछ कर नहीं सकते । जब ये लोग यहाँ गिरफ्तार होकर आये तो कुछ दिन तक तो भलमनसी के साथ रहे, मगर आज इनकी नीयत बिगड़ी हुई मालूम पड़ी।

भूतनाथ--खैर, अब आप ही इनके लिए हुक्म सुनाइए । मगर इन्द्रदेव, आप यह न समझियेगा कि इन लोगों के बारे में मुझे किसी तरह का रंज है । मैं सच कहता हूँ कि इन दोनों का यहाँ आना मेरे लिए बहुत अच्छा हुआ ! मैं इन लोगों के फेर में बेतरह फंसा हुआ था । आज मालूम हुआ कि ये लोग जहरी हलाहल से भी बढ़े हुए हैं, अतः आज इन लोगों से पीछा छुड़ाकर मैं बहुत ही प्रसन्न हुआ। मेरे सिर से बोझा उतर गया और अब मेरी जिन्दगी खुशी के साथ बीतेगी। आपका कहना सच निकला अर्थात् इनका यहाँ आना मेरे लिए खुशी का सबब हुआ

इन्द्रदेव--अच्छा यह बताइए कि ये अगर इसी तरह छोड़ दिये जायें तो आपके खजाने को तो किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकते जो 'लामाघाटी' के अन्दर है?

भूतन--कुछ भी नहीं, और 'लामाघाटी' के अन्दर जेवरों के अतिरिक्त और कुछ है भी नहीं, सो जेवरों को मैं वहाँ से मँगवा ले सकता हूँ।

इन्द्रदेव--अगर सिर्फ नानक की माँ के जेवरों से आपका मतलब है तो वह अब मेरे कब्जे में हैं क्योंकि नन्हीं के यहां वह बिना जेवरों के नहीं गई थी।

भूतनाथ--बस, तो मैं उस तरफ से बेफिक्र हो गया, यद्यपि उन जेवरों की मुझे कोई परवाह नहीं है मगर उसके पास मैं एक कौड़ी भी नहीं छोड़ना चाहता। इसके अतिरिक्त यह भी जरूर कहूँगा कि अब ये लोग सूखे छोड़ देने लायक नहीं रहे।

इन्द्रदेव--खैर, जैसी राय होगी, वैसा ही किया जायगा।

इतना कहकर इन्द्रदेव ने पुनः सरयूसिंह को बुलाया और जब वह कमरे के अन्दर आ गया तो कहा--"थोड़ी देर के लिए नानक को बाहर ले जाओ।"

नानक को लिए हुए सरयूसिंह कमरे के बाहर चला गया और इसके बाद चारों आदमी विचार करने लगे कि नानक और उसकी मां के साथ क्या बर्ताव करना चाहिए। देर तक सोच-विचार कर यही निश्चय किया कि उन दोनों को देश से निकाल दिया जाय और कह दिया जाय कि जिस दिन हमारे महाराज की अमलदारी में दिखाई दोगे, उसी दिन मार डाले जाओगे।

इस हुक्म पर महाराज से आज्ञा लेने की इन लोगों को कोई जरूरत नहीं थी, क्योंकि उन्होंने सब बातें सुन-सुनाकर पहले ही हुक्म दे दिया था कि भूतनाथ की आज्ञा- नुसार काम किया जाय, अतः नानक कमरे के अन्दर बुलाया गया और इसके बाद राम-