पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/११९

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विवाह का सब सामान ठीक हो गया, मगर हर तरह की तैयारी हो जाने पर भी लोगों की मेहनत में कमी नहीं हुई। सब कोई उसी तरह दौड़-धूप और काम-काज में लगे हुए दिखाई दे रहे हैं। महाराज सुरेन्द्र सिंह सभी को लिए हुए चुनारगढ़ चले गए। अब इस तिलिस्मी मकान में सिर्फ जरूरत की चीजों के ढेर और इन्तजामकार लोगों के डेरे भर ही दिखाई दे रहे हैं । इस मकान में से उन लोगों के लिए भी रास्ता बनाया गया है जो हँसते-हँसते उस तिलिस्मी इमारत में कूदा करेंगे जिसके बनाने की आज्ञा इन्द्र देव को दी गई थी और जो इस समय बनकर तैयार हो गई है।

यह इमारत बीस गज लम्बी और इतनी ही चौड़ी थी। ऊँचाई इसकी लगभग चालीस हाथ से कुछ ज्यादा होगी। चारों तरफ की दीवार साफ और चिकनी थी तथा किसी तरफ कोई दरवाजे का निशान दिखाई नहीं देता था। पूरब की तरफ ऊपर चढ़ जाने के लिए छोटी सीढ़ियाँ बनी हुई थीं जिनके दोनों तरफ हिफाजत के लिए लोहे के सींखचे लगा दिए गये थे। उसी पूरब की तरफ वाली दीवार पर दड़े-बड़े हरफों में यह भी लिखा हुआ था--

"जो आदमी इन सीढ़ियों की राह ऊपर जायगा और एक नजर अन्दर की तरफ झांक वहां की कैफियत देखकर इन्हीं सीढ़ियों की राह नीचे उतर आवेगा, उसे एक लाख रुपये इनाम में दिए जायेंगे।"

इस इमारत ने चारों तरफ एक अनूठा रंग पैदा कर दिया था। हजारों आदमी उस इमारत के ऊपर चढ़ जाने के लिए तैयार थे और हर एक आदमी अपनी-अपनी लालसा पूरी करने के लिए जल्दी मचा रहा था, मगर सीढ़ी का दरवाजा बन्द था। पहरेदार लोग किसी को ऊपर जाने की इजाजत नहीं देते थे और यह कह कर सभी को सन्तोष करा देते थे कि बारात वाले दिन यह दरवाजा खुलेगा और पन्द्रह दिन तक बन्द न होगा।

यहां से चुनारगढ़ की सड़क के दोनों तरफ जो सजावट की गई थी, उसमें भी एक अनूठापन था। दोनों तरफ रोशनी के लिए जाफरी बनी हुई थी और उनमें अच्छे- अच्छे नीति के श्लोक दरसाए गये थे। बीच-बीच में थोड़ी-थोड़ी दूर पर नौबतखाने के बगल में एक-एक मचान था जिस पर एक या दो कैदियों के बैठने के लिए जगह बनी हुई थी। जाफरी के दोनों तरफ दस हाथ चौड़ी जमीन में बाग का नमूना तैयार किया गया था और इसके बाद आतिशबाजी लगाई गई थी। आध-आध कोस की दूरी पर सर्व- साधारण और गरीब तमाशबीनों के लिए महफिल तैयार की गई थी और उसके लिए अच्छी-अच्छी गाने वाली रंडियाँ और भाँड़ मुकर्रर किए गए थे । रम्त अंधेरी होने के कारण रोशनी का सामान ज्यादा तैयार किया गया था और वह तिलिस्मी चन्द्रमा जो


1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति इक्कीसवाँ भाग, आठवां बगान ।