पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
120
 

दोनों राजकुमारों को तिलिस्म के अन्दर से मिला था, चुनारगढ़ किले के ऊँचे कँगूरे पर लगा दिया गया था जिसकी रोशनी इस तिलिस्मी मकान तक बड़ी खूबी और सफाई के साथ पड़ रही थी।

पाठक, दोनों कुमारों की बारात की सजावट, महफिलों की तैयारी, रोशनी और आतिशबाजी की खूबी, मेहमानदारी की तारीफ और खैरात की बहुतायत इत्यादि का हाल विस्तारपूर्वक लिखकर पढ़ने वालों का समय नष्ट करना हमारी आत्मा और आदत के विरुद्ध है। आप खुद समझ सकते हैं कि दोनों कुमारों की शादी का इन्तजाम किस खूबी के साथ किया गया होगा, नुमाइश की चीजें कैसी अच्छी होंगी, वड़प्पन का कितना बड़ा खयाल किया गया, और बारात किस धूमधाम से निकली होगी। हम आज तक जिस तरह संक्षेप में लिखते आए हैं अब भी उसी तरह लिखेंगे, तथापि हमारी उन लिखावटों से जो ब्याह के सम्बन्ध में ऊपर कई दफे मौके-मौके पर लिखी जा चुकी हैं आपको अन्दाज के साथ-साथ अनुमान करने का हौसला भी मिल जायगा और विशेष सोच-विचार की जरूरत न रहेगी। हम इस जगह पर केवल इतना ही लिखेंगे कि--

बारात बड़े धूम-धाम से चुनारगढ़ के बाहर हुई। आगे-आगे नौबत, निशान और उसके बाद सिलसिले से फौजी सवार, पैदल और तोपखाने वगैरह थे, जिसके बाद ऐसी फुलवारियाँ थीं जिनके देखने से खुशी और लूटने से दौलत हासिल हो । इसके बाद बड़े सजे हुए अम्बारीदार हाथी पर दोनों कुमार हाथी पर ही सवार अपने बड़े बुजुर्गों, रिश्तेदारों और मेहमानों से घिरे हुए धीरे-धीरे दोतर्फी बहार लूटते और दुश्मनों के कलेजों को जलाते हुए जा रहे थे और उनके बाद तरह-तरह की सवारियों और घोड़ों पर बैठे हुए बड़े-बड़े सरदार लोग दिखाई दे रहे थे । अन्त में फिर फौजी सिपाहियों का सिलसिला था। आगे वाले नौबत-निशान से लेकर कुमारों के हाथी तक कई तरह के बाजे वाले अपने मौके से अपना इल्म और हुनर दिखा रहे थे।

कुशलपूर्वक बारात ठिकाने पहुंची और शास्त्रानुसार कर्म तथा रीति होने के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह का विवाह किशोरी से और आनन्दसिंह का कामिनी के साथ हो गया और इस काम में रणधीरसिंह ने भी वित्त के अनुसार दिल खोलकर खर्च किया । दूसरे रोज पहर भर दिन चढ़ने के पहले ही दोनों बहुओं की रुखसती कराके महाराज चुनार की तरफ लौट पड़े।

चुनारगढ़ पहुँचने पर जो कुछ रस्में थीं वे पूरी होने लगी और मेहमान तथा तमाशबीन लोग नरह-तरह के तमाशों और महफिलों का आनन्द लूटने लगे। उधर तिलिस्मी मकान की सीढ़ियों पर लाख रुपया इनाम पाने की लालसा से लोगों ने चढ़ना आरम्भ किया। जो कोई दीवार के ऊपर पहुंचकर अन्दर की तरफ झाँकता, वह अपने दिल को किसी तरह न सम्हाल सकता और एक दफे खिलखिलाकर हँसने के बाद अन्दर की तरफ कूद पड़ता तथा कई घण्टे के बाद उस चबूतरे वाली बहुत बड़ी तिलिरमी इमारत की राह से बाहर निकल जाता।

बस, विवाह का इतना ही हाल संक्षेप में लिखकर अब हम इस बयान को पूरा करते हैं और इसके बाद सोहागरात की एक बहुत ही अनूठी घटना का उल्लेख करके