पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१२

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कुछ समझाया मगर उसने एक न मानी। (कुछ रुककर) यही सब है कि मुझे इन सब बातों से आगाही हो गई और मैं भूतनाथ के भी बहुत से भेदों को जान गया।

जीतसिंह-ठीक है । (भूतनाथ की तरफ देख के) भूतनाथ, इस समय तुम्हारा ही मामला पेश है ! इस जगह हम जितने भी आदमी हैं, सभी कोई तुमसे हमदर्दी रखते हैं; महाराज भी तुमसे बहुत प्रसन्न हैं। ताज्जुब नहीं कि वह दिन आज ही हो कि तुम्हारे कसूर माफ किए जायं और तुम महाराज के ऐयार बन जाओ, मगर तुम्हें अपना हाल या जो कुछ तुमसे पूछा जाय उसका जवाब सच-सच कहना और देना चाहिए । इस समय तुम्हारा ही किस्सा हो रहा है ।

भूतनाथ-(खड़े होकर सलाम करने के बाद) आज्ञा के विरुद्ध कुछ भी न करूंगा और कोई बात छिपा न रक्खूगा।

जीतसिंह--तुम्हें यह तो मालूम हो गया कि सरयू और इन्दिरा भी यहाँ आ गई हैं जो जमानिया के तिलिस्म में फंस गई थी और उन्होंने अपना अनूठा किस्सा बड़े दर्द के साथ बयान किया था।

भूतनाथ-(हाथ जोड़ के) जी हाँ, मुझ कम्बख्त की बदौलत उन्हें उस कैद की तकलीफ भोगनी पड़ी। उन दिनों बदकिस्मती ने मुझे हद से ज्यादा लालची बना दिया था। अगर मैं लालच में पड़कर दारोगा को न छोड़ देता तो यह बात कभी न होती। आपने सुना ही होगा कि उन दिनों हथेली पर जान लेकर मैंने कैसे-कैसे काम किये थे, मगर दौलत की लालच ने मेरे सब कामों पर मिट्टी डोल दी। अफसोस, मुझे इस बात की कुछ भी खबर न हुई कि दारोगा ने अपनी प्रतिज्ञा के विरुद्ध सारे काम किये,अगर मुझे खबर लग जाती तो उससे समझ लेता।

जीतसिंह-अच्छा यह बताओ कि तुम्हारा भाई शेरसिंह कहाँ है ?

भूतनाथ-मेरे यहाँ होने के सबब से न मालूम वह कहाँ जाकर छिपा बैठा है । उसे विश्वास है कि भूतनाथ जिसने बड़े-बड़े कसूर किए हैं, कभी निर्दोष छूट नहीं सकता। बल्कि ताज्जुब नहीं कि उसके सबंब से मुझ पर भी किसी तरह का इलजाम लगे। हाँ, अगर वह मुझे बेकसूर छूटा हुआ देखेगा या सुनेगा तो तुरन्त प्रकट हो जायगा।

जीतसिंह--वह चिट्ठयों वाला मुट्ठा तुम्हारे ही हाथ का लिखा हुआ है या नहीं?

भूतसिंह-जी वे सब चिट्ठियाँ है तो मेरे ही हाथ की लिखी हुई, मगर वे असल नहीं बल्कि उन असली चिट्ठियों की नकलें हैं जो कि मैंने जयपाल (रघुवरसिंह) के यहाँ से चोरी की थीं । असल में इन चिट्ठियों का लिखने वाला मैं नहीं, बल्कि जयपाल है।

जीतसिंह-खैर, तो जब तुमने जयमाल के यहाँ से असल चिट्ठियों की नकल की थी तो तुम्हें उसी समय मालूम हुआ होगा कि लक्ष्मीदेवी और बलभद्रसिंह पर क्या आफत आने वाली है ?

भूतनाथ-क्यों न मालूम होता ! परन्तु रुपये की लालच में पड़कर अर्थात् कुछ लेकर मैंने जयपाल को छोड़ दिया। मगर बलभद्र सिंह से मैंने इस होनहार के बारे में इशारा जरूर कर दिया था, हाँ जयपाल का नाम नहीं बताया क्योंकि उससे रुपया वसूल कर चुका था। ओ यह कहना भी मैं भूल ही गया कि रुपये वसूल करने के साथ ही