आपको उसके पास बैठने या उससे बातचीत करने का क्या हक था?
इन्द्रजीतसिंह--तो क्या मैं इन्द्रजीत नहीं हूँ ? बल्कि उचित तो यह था कि तुम मेरे पास से उठ जातीं । जब तुम कमलिनी थीं तो तुम्हें पराये मर्द के पास बैठना भी न चाहिए था।
कमलिनी--(ताज्जुब और कुछ क्रोध का चेहरा बना कर) फिर आप वही बातें कहे जाते हैं ? आप अपने को समझ ही क्या रहे हैं ? पहले आप आईने में अपनी सूरत देखिए और तब कहिए कि आप किशोरी के पति हैं या कमलिनी के ! (आले पर से आईना उठा और कुमार को दिखाकर) अन बताइये, आप कौन हैं ? और मैं क्यों आपके पास से उठ जाती?
अब तो कुमार के ताज्जुब की कोई हद न रही, क्योंकि आईने में उन्होंने अपनी सूरत में फर्क पाया । यह तो नहीं कह सकते थे कि किस आदमी की सूरत मालूम पड़ती है। क्योंकि ऐसे आदमी को कभी देखा भी न था, मगर इतना जरूर कह सकते थे कि सूरत बदल गई और अब मैं इन्द्रजीतसिंह नहीं मालूम पड़ता। इन्द्रजीत सिंह समझ गए कि किसी ने मेरे और कमलिनी के साथ चालबाजी करके दोनों का धर्म नष्ट किया और इसमें बेचारी कमलिनी का कोई कसूर नहीं है। मगर फिर भी कमलिनी को आज का सामान देख कर चौंकना चाहिए था। हां, ताज्जुब की बात यह है कि इस घर में आने के पहले मुझे किसी ने टोका भी नहीं ! तो क्या इस घर में आने के बाद मेरी सूरत बदली गई ? मगर ऐसा भी क्योंकर हो सकता है ?—इत्यादि बातें सोचते हुए कुमार कमलिनी का मुंह देखने लगे। कमलिनी ने आईना हाथ से रख दिया और पूछा, "अब बताइये, आप कौन हैं ?" इसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने कहा, "अब मैं भी अपना मुंह धो डालूं तो कहूँ।"
यह कहकर कुमार ने भी जल से अपना चेहरा साफ किया और रूमाल से पोंछने के बाद कमलिनी की तरफ देखकर कहा–'अब तुम ही बताओ कि मैं कौन हूँ?"
कमलिनी--अरे, यह क्या हुआ ! तुम तो बेशक बड़े कुमार हो? मगर तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? तुम्हें जरा भी धर्म का विचार न हुआ ? बताओ, अब मैं किस लायक रह गई और क्या कर सकती हूँ ? लोगों को कैसे अपना मुँह दिखाऊँगी और इस दुनिया में क्योंकर रहूँगी?
इन्द्रजीतसिंह--जिसने ऐसा किया वह बेशक मारे जाने लायक है । मैं उसे कभी न छोडूंगा क्योंकि ऐसा होने से मेरा भी धर्म नष्ट हुआ है। और इस बदमाशी को मैं कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता, मगर यह तो बताओ कि आज का सामान देखकर तुम्हारे दिल में किसी प्रकार का शक पैदा न हुआ?
कमलिनी--क्योंकर शक पैदा हो सकता था, जब कि आप ही की तरह मेरे लिए भी 'सोहाग रात' आज ही तय गई थी ! मैं नहीं कह सकती थी कि दूसरी तरफ का क्या हाल है ! ताज्जुब नहीं कि जिस तरह मैं धोखे में डाली गई, उसी तरह किशोरी के साथ भी बेईमानी की गई हो और आपके बदले में किशोरी मेरे पति के पास पहुंचाई गई हो!
ओ हो ! कमलिनी की इस बात ने तो कुमार की रही-सही अक्ल भी खो दी !