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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१२४

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जिस बात का अब तक कुमार के दिल में ध्यान भी न था, उसे समझा कर तो कमलिनी ने अनर्थ कर दिया । ब्याह हो जाने पर भी किशोरी किसी दूसरे मर्द के पास भेजी जाय, क्या इस बात को कुमार बर्दाश्त कर सकते थे ? कभी नहीं ! सुनने के साथ ही मारे क्रोध के उनका शरीर काँपने लगा और वे घबरा कर कमलिनी से बोले, "यह तो तुमने ठीक कहा ! ताज्जुब नहीं कि ऐसा हुआ हो। लेकिन अगर ऐसा हुआ होगा तो मैं उन दोनों को इस दुनिया से उठा दूंगा!"

इतना कहकर कुमार ने अपनी तलवार उठा ली जो गद्दी पर पड़ी हुई थी और कमरे के बाहर जाने लगे। उस समय कमलिनी ने कुमार का हाथ पकड़ लिया और कहा, "कृपानिधान, जरा मेरी एक बात का जवाब दे दीजिये तो यहाँ से जाइये !"

इन्द्रजीतसिंह--कहो।

कमलिनी--आपका धर्म नष्ट हुआ, खैर, कोई चिन्ता नहीं, क्योंकि धर्मशास्त्र में मर्दो के लिए कोई कड़ी पाबन्दी नहीं लगाई गई है, मगर औरतों को तो किसी लायक नहीं छोड़ा है। आपके लिए तो प्रायश्चित्त है, मगर मेरे लिए तो कोई प्रायश्चित्त भी नहीं जिसे करके मैं सुधार जाऊँगी, इतना जानकर भी मेरा धर्म नष्ट होने पर आपको उतना रंज या क्रोध नहीं हुआ, जितना यह सोच कर हुआ कि किशोरी की भी ऐसी ही दशा हुई होगी ! ऐसा क्यों? क्या मेरा पति कमजोर और नामर्द है ? क्या वह भी आपकी ही तरह क्रोध में न आया होगा? क्या इसी तरह वह भी तलवार लेकर मेरी और आपकी खोज में न निकला होगा? आप जल्दी क्यों करते हैं, वह खुद यहाँ आता होगा क्योंकि वह आपसे ज्यादा क्रोधी है, मैं तो खुद उसके सामने अपनी गर्दन झुका दूंगी!

कुमार को क्रोध-पर-क्रोध, रंज-पर-रंज और अफसोस-पर-अफसोस होता ही जाता था। कमलिनी की इस आखिरी बात ने कुमार के दिल में दूसरा ही रंग पैदा कर दिया। उन्होंने घबरा कर एक लम्बी सांस ली और ऊपर की तरफ मुंह करके कहा, "विधाता ! टूने यह क्या किया? मैंने कौन-सा ऐसा पाप किया था, जिसके बदले में इस खुशी को ऐसे रंज के साथ तूने बदल दिया ! अब मैं क्या करूँ ? क्या अपने हाथ से अपना गला काटकर निश्चिन्त हो जाऊँ ? मुझ पर आत्मघात का दोष तो नहीं लगाया जायगा!"

इन्द्रजीतसिंह ने इतना ही कहा था कि कमरे का वह दरवाजा, जिसे कुमार बन्द समझते थे, खुला और किशोरी तथा कमला अन्दर आती हुई दिखाई पड़ी। कुमार ने समझा कि बेशक किशोरी इसी ढंग का उलाहना लेकर आई होगी, मगर उन दोनों के चेहरों पर हँसी देख कर कुमार को ताज्जुब हुआ और यह देख कर उनका ताज्जुब और भी बढ़ गया कि किशोरी और कमला को देख कर कमलिनी खिलखिला कर हँस पड़ी और किशोरी से बोली- "लो बहिन, आज मैंने तुम्हारे पति को अपना बना लिया !" इसके जवाब में किशोरी बोली, "तुमने पहले ही अपना बना लिया था, आज की बात ही क्या है!"