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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१३७

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आपसे मिलाप हो जाने पर यदि भैरोंसिंह से कुछ भूल भी हो जाय तो आप यही समझें कि अभी तक इनके दिमाग में पागलपन का कुछ धुआं बचा हुआ है । जिस समय हम लोग तिलिस्म के अन्दर पहुँचाए गये थे, उस समय राजा गोपालसिंह ने अपनी खास तिलिस्मी किताब कमलिनीजी को दे दी थी जिससे तिलिस्म का बहुत-कुछ हाल मालूम हो गया था और इनकी मदद से हम लोग जो चाहते थे करते थे तथा हमें किसी बात की तकलीफ भी नहीं होती थी और खाने-पीने की सभी चीजें राजा गोपालसिंहजी पहुंचा दिया करते थे।

"भैरोंसिंह जव पागल बनने के बाद आपसे मिले थे तो अपना ऐयारी का बटुआ जान-बूझ कर कमलिनी के पास रख गये थे। फिर जब भैरोंसिंह को बुलाने की इच्छा हुई तो उन्हीं का बटुआ और पीले मकरन्द की लड़ाई दिखा कर वे आपसे अलग कर लिए गये, कमलिनी पीछे मकरन्द की सूरत में थीं और मैं उनका मुकाबला कर रही थी, कही-बदी और मेल की लड़ाई थी इसलिए आपने समझा होगा कि हम दोनों बड़े बहादुर और लड़ाके हैं । अतः इस मामले के बाद जब इन्द्रानी और आनन्दी वाले बाग में भैरों- सिंह आपसे मिले तब भी इन्होंने बहुत-सी झूठी बातें बनाकर आपसे कहीं और जब आप इनसे रंज हुए तो आपका संग छोड़ कर ये फिर हम लोगों की तरफ चले आये। आप दोनों भाई उस शादी करने से इन्कार करते थे, मगर मजबूरी और लाचारी ने आपका पीछा न छोड़ा, इसके अतिरिक्त खुद इन्द्रानी और आनन्दी ने भी आप दोनों को किशोरी और कामिनी की चिट्ठी दिखा कर खुश कर लिया था। यहाँ आकर आपने सुना ही है कि कमलिनीजी के पिता बलभद्रसिंहजी, जिन्हें भूतनाथ छुड़ा लाया था, यकायक गायब हो गए और कई दिनों के बाद लौट कर आये।"


कुमार-–हाँ, सुना था।

कमला--बस, उन्हें राजा गोपालसिंह ही यहाँ आकर ले गये थे और खुद बल- भद्रसिंहजी ने ही अपनी दोनों लड़कियों का कन्या-दान किया था।

कुमार--(हंसते हुए) ठीक है, अब मैं सब बातें समझ गया और यह भी मालूम हो गया कि केवल धोखा देने के लिए ही माधवी और मायारानी, जो पहले ही मर चुकी थीं, इन्द्रानी और आनन्दी बनाकर दिखाई गई थीं।

भैरोंसिंह--जी हाँ।

कुमार--मगर नानक वहाँ क्योंकर पहुंचा था? भैरोंसिंह--आप सुन चुके हैं कि तारासिंह ने नानक को कैसा छकाया था, अतः वह हम लोगों से बदला लेने की नीयत करके वहाँ गया और मायारानी से मिल गया था। कमलिनीजी ने वहाँ का रास्ता उसे बता दिया था, उसी का यह नतीजा निकला। जब मायारानी राजा गोपालसिंह के कब्जे में पड़ गई तब राजा साहब ने नानक को बहुत कुछ बुरा-भला कहा, यहाँ तक कि नानक उनके पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने कसूर की माफी मांगी। उस समय राजा साहब ने उसका कसूर माफ करके उसे अपने साथ रख लिया। तब से वह उन्हीं के कब्जे में रहा और उन्हीं की आज्ञानुसार आपको धोखे में


1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, अठारहवाँ भाग, ग्यारहवाँ बयान ।