सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
'149
 

मंगवाये । मुझे तो उस कलमदान की सूरत देखने से भी डर मालूम होता था क्योंकि म जानती थी कि वह कलमदान हम लोगों के खून का प्यासा और दारोगा के बड़े-बड़े भेदों से भरा हुआ है । इसके अतिरिक्त उस पर इन्दिरा की बचपन की तस्वीर भी बनी हुई थी और सुन्दर अक्षरों में इन्दिरा का नाम लिखा हुआ था. जिसके विषय में मैं उन दिनों जानती थी कि वे माँ-बेटी बड़ी बेदर्दी के साथ मारी गई । यही सबब था कि उस कलम- दान की सूरत देखते ही मुझे तरह-तरह की बातें याद आ गईं, मेरा कलेजा दहल गया और मैं डर के मारे काँपने लगी। खैर, जब मैं नानक को लिए हुए जमानिया की सर- हद में पहुंची तो उसे धनपत के हवाले करके खास बाग में चली गई, अपना दुपट्टा नहर में फेंकती गई। दूसरी राह से उस तिलिस्मी कुएं के नीचे पहुँच कर पानी का प्याला और बनावटी हाथ निकालने के बाद मायारानी से जा मिली और फिर बचा हुआ काम धनपत और दारोगा ने पूरा किया। दारोगा वाले बंगले में जो तस्वीर रक्खी हुई थी वह केवल नानक को धोखा देने के लिए थी, उसका और कोई मतलब न था, और रोहतासगढ़ के तहखाने में जो मेरी तस्वीर आप लोगों ने देखी थी, वह वास्तव में दिग्विजयसिंह की बुआ ने मेरे सुभीते के लिए लटकाई थी और तहखाने की बहुत-सी बातें समझाकर बता दिया था कि 'जहाँ तू अपनी तस्वीर देखना समझ लेना कि उसके फला तरफ फलां बात है' इत्यादि । बस, वह तस्वीर इतने ही काम के लिए लटकाई गई, थी । वह बुढ़िया बड़ी नेक थी, और उस तहखाने का हाल बनिस्बत दिग्विजयसिंह के बहुत ज्यादा जानती थी, मैं पहले भी महाराज के सामने बयान कर चुकी हूं कि उसने मेरी मदद की थी। वह कई दफे मेरे डेरे पर आई थी और तरह-तरह की बातें समझा गई थी। मगर न तो दिग्विजयसिंह उसकी कदर करता था और न वही दिग्विजयसिंह को चाहती थी। इसके अतिरिक्त यह भी कह देना आवश्यक है कि मैं तो उस बुढ़िया की मदद से तहखाने के अन्दर चली गई थी मगर कुन्दन अर्थात् धनपत ने वहां जो कुछ किया वह मायारानी के दारोगा की बदौलत था। घर लौटने पर मुझे मालूम हुआ कि दारोगा वहाँ कई दफे छिपकर गया और कुन्दन से मिला था मगर उसे मेरे बारे में कुछ खबर न थी, अगर खबर होती तो मेरे और कुन्दन के बीच जुदाई न रहती। मगर मुझे इस बात का ताज्जुब जरूर है कि वापस घर पहुंचने पर भी धनपत ने वहां की बहुत- सी बातें मुझसे छिपा रक्खीं।

किशोरी--अच्छा, यह तो बताओ कि रोहतासगढ़ में जो तस्वीर तुमने कुन्दन को दिखाने के लिए मुझे दी थी, वह तुम्हें कहाँ से मिली थी और तुम्हें तथा कुन्दन को उसका असली हाल क्योंकर मालूम हुआ था?

लाड़िली--उन दिनों मैं यह जानने के लिए बेताब हो रही थी कि कुन्दन असल में कौन हैं । मुझे इस बात का भी शक हुआ था कि वह राजा साहब (वीरेन्द्रसिंह) की कोई ऐयारा होगी और यही शक मिटाने के लिए मैंने वह तस्वीर खुद बनाकर उसे दिखाने के लिए तुम्हें दी थी । असल में उस तस्वीर का भेद हम लोगों को मनोरमा की


1. देखिए चन्द्रकान्ता सन्तति, चौथा भाग, दसवां बयान।