पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१५

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सुरेन्द्रसिंह —— बेशक इन्द्रदेव ने यह बड़े हौसले और सब्र का काम किया !

गोपालसिंह —— दोस्ती का हक अदा करना इसे कहते हैं, जितने अहसान भूतनाथ ने इन पर किये थे, सभी का बदला एक ही बात से चुका दिया ! भूतनाथ —– (गोपालसिंह की तरफ देख के) कुंअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह से इन्दिरा ने अपना हाल किस तरह पर बयान किया था सो मुझे मालूम न हुआ । अगर यह मालूम हो जाता तो अच्छा होता कि इन्दिरा ने जो कुछ बयान किया था वह ठीक है अथवा उसने जो कुछ सुना था वह सच था ?

गोपालसिंह —— जहाँ तक मेरा खयाल है, मैं कह सकता हूँ कि इन्दिरा ने अपने विषय में कोई बात ज्यादा नहीं कही, बल्कि ताज्जुब नहीं कि वह कई बातें मालूम न होने के कारण छोड़ गई हो। मैंने उसका पूरा-पूरा किस्सा महाराज को लिख भेजा था। (जीतसिंह की तरफ देखकर) अगर मेरी वह चिट्ठी यहाँ मौजूद हो, तो भूतनाथ को दे दीजिये, उसमें से इन्दिरा का किस्सा पढ़कर ये अपना शक मिटा लें।

"हां वह चिट्ठी मौजूद है" इतना कह कर जीतसिंह उठे और आलमारी से वह किताबनुमा चिट्ठी निकाल कर और इन्दिरा का किस्सा बता कर भूतनाथ को दे दी। भूतनाथ उसे तेजी के साथ पढ़ गया और अन्त में बोला, "हाँ ठीक है, करीब-करीब सभी बातें उसे मालूम हो गई थी और आज मुझे भी एक बात नई मालूम हुई अर्थात् आखिरी मर्तबे जब मैं इन्दिरा को दारोगा के कब्जे से निकालकर ले गया था और अपने एक अड्डे पर हिफाजत के.साथ रख गया था तो वहाँ से एकाएक उसका गायब हो जाना मुझे बड़ा ही दुःखदायी हुआ। मैं ताज्जुब करता था कि इन्दिरा वहाँ से क्योंकर चली गई। जब मैंने अपने आदमियों से पूछा तो उन्होंने कहा कि 'हम लोगों को कुछ भी नहीं मालूम कि वह कब निकल कर भाग गई, क्योंकि हम लोग कैदियों की तरह उस पर निगाह नहीं रखते थे बल्कि घर का आदमी समझ कर कुछ बेफिक्र थे ।' परन्तु मुझे अपने आदमियों की बात पसन्द न आई और मैंने उन लोगों को सख्त सजा दी। आज मालूम हुआ कि वह कांटा मायाप्रसाद का बोया हुआ था। मैं उसे अपना दोस्त समझता था मगर अफसोस, उसने मेरे साथ बड़ी दगा की !"

गोपालसिंह —— इन्दिरा की जुबानी यह किस्सा सुन कर मुझे भी निश्चय हो गया कि मायाप्रसाद दारोगा का हितू है अतः मैंने उसे तिलिस्म में कैद कर दिया है । अच्छा, यह तो बताओ कि उस समय जब तुम आखिरी मर्तबे इन्दिरा को दारोगा के यहाँ से निकाल कर अपने अड्डे पर रख आये और लौट कर पुनः जमानिया गये, तो फिर क्या हुआ, दारोगा से कैसे निपटे, और सरयू का पता क्यों न लगा सके ?

भूतनाथ -- इन्दिरा को उस ठिकाने रख कर जब मैं लौटा तो पुनः जमानिया गया परन्तु अपनी हिफाजत के लिए पाँच आदमिमों को अपने साथ लेता गया और उन्हें (अपने आदमियों को) कब क्या करना चाहिए इस बात को भी अच्छी तरह समझा दिया क्योंकि वे पांचों आदमी मेरे शागिर्द थे और कुछ ऐयारी भी जानते थे । मुझे सरयू के लिए दारोगा से फिर मुलाकात करने की जरूरत थी मगर उसके घर में जाकर भुलाकात करने का इरादा न था क्योंकि मैं खूब समझता था कि वह 'दूध का जला छाछ फूंक के