पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१६८

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वैद्य को बुलाने के लिए रवाना हुआ। मुझे इस बात का रत्ती भर भी शक न था कि मोहनजी और दारोगा साहब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं अथवा इन दोनों में हमारे लिए कुछ बातें तय पा चुकी हैं। मैं बेधड़क उनके मकान पर गया और इत्तिला कराने के बाद उनके एकान्त वाले कमरे में जा पहुंचा जहां उन्होंने मुझे बुलवा भेजा था । उस समय वे अकेले बैठे माला जप रहे थे। नौकर मुझे वहाँ तक पहुंचा कर बिदा हो गया और मैंने उनके पास बैठकर राजा साहब का हाल बयान करके खास बाग में चलने के लिए कहा । जवाब में वैद्यजी यह कर कि 'मैं दवाओं का बन्दोबस्त करके अभी आपके साथ चलया हूँ' खड़े हुए और आलमारी में से कई तरह की शीशियां निकाल-निकाल कर जमीन पर रखने लगे। उसी बीच में उन्होंने एक छोटी शीशी निकाल कर मेरे हाथ में दी और कहा, "देखिए यह मैंने एक नये ढंग की ताकत की दवा तैयार की है, खाना तो दूर रहा इसके सूंघने ही से तुरन्त मालूम होता है कि बदन में एक तरह की ताकत आ रही है ! लीजिए, जरा सूंघ के अन्दाज तो कीजिए।"

मैं वैद्यजी के फेर में पड़ गया और शीशी का मुंह खोलकर सूंघने लगा। इतना तो मालूम हुआ कि इसमें कोई खुशबूदार चीज है मगर फिर तन-बदन की सुध न रही। जब मैं होश में आया तो अपने को हथकड़ी-बेड़ी से मजबूर एक अँधेरी कोठरी में कैद पाया। नहीं कह सकता कि वह दिन का समय था या रात का । कोठरी के एक कोने में चिराग जल रहा था और दारोगा तथा जयपाल हाथ में नंगी तलवार लिए सामने बैठे हुए थे।

मैं-(दारोगा से) अब मालूम हुआ कि आपने इसी काम के लिए मुझे वैद्यजी के पास भेजा था।

दारोगा–बेशक इसीलिए, क्योंकि तुम मेरी जड़ काटने के लिए तैयार हो चुके थे।

मैं तो फिर मुझे कैद कर रखने से क्या फायदा? मार कर बखेड़ा निपटाइए और बेखटके आनन्द कीजिए।

दारोगा-हां, अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो बेशक मुझे ऐसा ही करना पड़ेगा।

मैं-मानने की कौन-सी बात है ? मैंने तो अभी तक कोई ऐसा काम नहीं किया जिससे आपको किसी तरह का नुकसान पहुंचे।

दारोगा—ये सब बातें तो रहने दो, क्योंकि तुम और हरदीन मिलकर जो कुछ कर चुके थे और जो करना चाहते थे, उसे मैं खूब जानता हूँ मगर बात यह है कि अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें इस कैद से छुट्टी दे सकता हूँ, नहीं तो मौत तुम्हारे लिए तय हुई रक्खी है।

मैं-खैर बताइये तो सही कि वह कौन-सा काम है जिसके करने से छुट्टी मिल सकती है।

दारोगा-यही कि तुम एक चिट्ठी इन रघुबरमिह अर्थात् जयपाल के नाम की लिख दो जिसमें यह बात हो कि 'लक्ष्मीदेवी के बदले में मुन्दर को मायारानी बना देने