पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१८७

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परन्तु इस बात का ठीक-ठीक जवाब तो तुम्हारे सिवाय दूसरा शायद कोई नहीं दे सकता कि तुम्हें कैद करने में मायारानी ने कौन सी ऐसी कार्रवाई की कि किसी को पता न लगा और सभी लोग धोखे में पड़ गये, यहाँ तक कि तुम्हारी समझ में भी कुछ न आया और तुम चारपाई पर से उठाकर कैदखाने में डाल दिये गये।

गोपालसिंह––इसका ठीक-ठीक जवाब तो मैं नहीं दे सकता। कई बातों का पता मुझे भी नहीं लगा, क्योंकि मैं ज्यादा देर तक बीमारी की अवस्था में पड़ा नहीं रहा, बहुत जल्द बेहोश कर दिया गया। मैं क्योंकर जान सकता था कि कम्बख्त मायारानी दवा के बदले मुझे जहर पिला रही है, मगर मुझको विश्वास है कि दलीपशाह को इसका हाल बहुत ज्यादा मालूम हुआ होगा।

जीतसिंह––खैर आज के दरबार में और हाल भी मालूम हो जायगा।

कुछ देर तक इसी तरह की बातें होती रहीं। जब महाराज उठ गये तब सब लोग अपने ठिकाने चले गये और कारिन्दे लोग दरबार की तैयारी करने लगे।

भोजन आदि से छुट्टी पाने के बाद दोपहर होते-होते महाराज दरबार में पधारे। आज का दरबार कल की तरह रौनकदार था और आदमियों की गिनती बनिस्बत कल के आज बहुत ज्यादा थी।

महाराज की आज्ञानुसार दलीपशाह ने इस तरह अपना किस्सा बयान करना शुरू किया––

"मैं बयान कर चुका हूँ कि मैंने अपना घोड़ा गिरिजाकुमार को देकर दारोगा का पीछा करने के लिए कहा, अतः जब वह दारोगा के पीछे चला गया तब हम दोनों में सलाह होने लगी कि अब क्या करना चाहिए, अन्त में यह निश्चय हुआ कि इस समय जमानिया न जाना चाहिए, बल्कि घर लौट चलना चाहिए।

"उसी समय इन्द्रदेव के साथी लोग भी वहाँ आ पहुँचे। उनमें से एक का घोड़ा मैंने ले लिया और फिर हम लोग इन्द्रदेव के मकान की तरफ रवाना हुए। मकान पर पहुँचकर इन्द्रदेव ने अपने कई जासूसों और ऐयारों को हर एक बातए का पता लगाने के लिए जमानिया की तरफ रवाना किया किया। मैं भी अपने घर जाने को तैयार हुआ, मगर इन्द्रदेव ने मुझे रोक दिया।

"यद्यपि मैं कह चुका हूँ कि अपने किस्से में भूतनाथ का हाल बयान न करूँगा तथापि मौका पड़ने पर कहीं-कहीं लाचारी से उसका जिक्र करना ही पड़ेगा, अतः इस जगह यह कह देना जरूरी जान पड़ता है कि इन्द्रदेव के मकान पर ही मुझे इस बात की खबर लगी कि भूतनाथ की स्त्री बहुत बीमार हैं। मेरे एक शागिर्द ने आकर यह संदेशा दिया और साथ ही इसके यह भी कहा कि आपकी स्त्री उसे देखने के लिए जाने की आज्ञा माँगती है।

"भूतनाथ की स्त्री शान्ता बड़ी नेक और स्वभाव की बहुत अच्छी है। मैं भी उसे बहिन की तरह मानता था इसलिए उसकी बीमारी का हाल सुनकर मुझे तरद्दुद हुआ और मैंने अपनी स्त्री को उसके पास जाने की आज्ञा दे दी तथा खूबर लगी कि मेरे स्त्री शान्ता को लेकर अपने घर आ गई।