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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/१९४

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अर्जुनसिंह--खैर, आप कमर खोलिए और कुछ भोजन कीजिए, मैं भी आपके साथ चलने के लिए घंटे भर के अन्दर ही तैयार हो जाऊँगा।

मैं--क्या आप जमानिया चलेंगे?

अर्जुनसिंह--(आवाज में जोर देकर) जरूर!

"घंटे भर के अन्दर ही हम दोनों आदमी जमानिया जाने के लिए हर तरह से तैयार हो गये और ऐवारी का पूरा-पूरा सामान दुरुस्त कर लिया। दोनों आदमी असली सुरत में पैदल ही घर से बाहर निकले और कई कोस निकल जाने के बाद जंगल में बैठ- कर अपनी सूरत बदली, इसके बाद कुछ देर आराम करके फिर आगे की तरफ रवाना हुए और इरादा लिया कि आज की रात जंगल में पेड़ के ऊपर बैठकर बिता देंगे।

"आखिर ऐसा ही हुआ। संध्या होने पर हम दोनों दोस्त जंगल में एक रमणीक स्थान देखकर अटक गये जहां पानी का सुन्दर चश्मा बह रहा था तथा सलई का एक बहुत बड़ा और घना पेड़ भी था जिस पर बैठने के लिए ऐसी अच्छी जगह थी कि उस पर बैठे-बैठे घंटे-दो घंटे नींद भी ले सकते थे।

यद्यपि हम लोग किसी सवारी पर बहुत जल्द जमानिया पहुँच सकते थे और वहाँ अपने लिए टिकने का भी इन्तजाम कर सकते थे, मगर उन दिनों जमानिया की ऐसी बुरी अवस्था थी कि ऐसा करने की हिम्मत न पड़ी और जंगल में टिके रहना ही उचित जान पड़ा। दोनों आदमी एक-दिल थे, इसलिए कुछ तरदुद या किसी तरह के खुटके का भी कुछ खयाल न था।

"अंधकार छा जाने के साथ ही हम दोनों आदमी पेड़ के ऊपर जा बैठे और धीरे धीरे बातें करने लगे, थोड़ी ही देर बाद कई आदमियों के आने की आहट मालूम हुई, हम देनों चुप हो गये और इन्तजार करने लगे कि देखें कौन आता है। थोड़ी ही देर में दो आदमी उस पेड़ के नीचे आ पहुंचे। रात हो जाने के सबब से हम उनकी शक्ल-सूरत अच्छी तरह नहीं देख सकते थे, घने पेड़ों में से छनी हुई कुछ-कुछ और कहीं-कहीं चन्द्रमा रोशनी जमीन पर पड़ रही थी, उसी से अन्दाजा कर लिया कि ये दोनों सिपाही हैं, मगर ताज्जुब होता था कि ये लोग रास्ता छोड़ भेदियों और ऐयारों की तरह जंगल में क्यों टिके हैं!"

"दोनों आदमी अपनी छोटी गठरी जमीन पर रखकर पेड़ के नीचे बैठ गये और इस तरह बातें करने लगे--

एक--भाई, हमें तो इस जंगल में रात काटना कठिन मालूम होता है।

दूसरा--सो क्यों?

पहला--डर मालूम होता है कि किसी जानवर का शिकार न बन जायें।

दूसरा--बात तो ऐसी ही है। मुझे भी यहां टिकना बुरा मालूम होता है, मगर ज्या किया जाये, बाबाजी का हुक्म ही ऐसा है।

पहला--बाबाजी तो अपने काम के आगे दूसरे की जान का कुछ भी खयाल नहीं करते । जब से हमारे राजा साहब का देहान्त हुआ है, तब से इनका दिमाग और भी बढ़ गया है।