दूसरा-इनकी हुकूमत के मारे तो हमारा जी ऊब गया, अब नौकरी करने की इच्छा नहीं होती।
पहला–मगर इस्तीफा देते भी डर मालूम होता है, झट यही कह बैठेंगे कि 'तू हमारे दुश्मनों से मिल गया है। अगर इस तरह की बात उनके दिल में बैठ जाये, तो जान बचानी भी मुश्किल होगी।
दूसरा-इनकी नौकरी में यही तो मुश्किल है । रुपया खूब मिलता है, इसमें कोई सन्देह नहीं, मगर जान का डर हरदम बना रहता है । कम्बख्त मनोरमा की हुकूमत के मारे तो और भी नाक में दम रहता है । जब से राजा साहब मरे हैं इसने महल में डेरा ही जमा लिया है, पहले डर के मारे दिखाई भी नहीं देती थी। एक बाजारू औरत का इस तरह रियासत में घुसे रहना कोई अच्छी बात है?
पहला-अजी, जब हमारी रानी साहिबा ही ऐसी हैं तो दूसरे को क्या कहें? मनोरमा तो बाबाजी की जान ही ठहरी।
दूसरा-बीच में यह बेगम कम्बख्त नई निकल पड़ी है जहाँ घड़ी-घड़ी दौड़ के जाना पड़ता है!
पहला-(हँसकर) जानते नहीं हो ? यह जयपालसिंह की नानी (रण्डी) है । पहले भूतनाथ के पास रही, अब इनके गले पड़ी है। इसे भी तुम आफत की पुड़िया ही समझो, चार दफे मैं उसके पास जा चुका हूँ, आज पाँचवीं दफे जा रहा हूँ, इस बीच में मैं उसे अच्छी तरह पहचान गया।
दूसरा-मैं समझता हूँ कि बिहारीसिंह का भी उससे कुछ सम्बन्ध है।
पहला-नहीं ऐसा तो नहीं है, अगर बिहारीसिंह से बेगम का कुछ लगाव होता तो जयपालसिंह और बिहारीसिंह में जरूर खटक जाती, जिसमें इधर तो बिहारीसिंह बहुत दिनों तक अर्जुनसिंह के यहाँ कैदी ही रहे, आज किसी तरह छूट कर अपने घर पहुँचे हैं, अब देखो गिरिजाकुमार पर क्या मुसीबत आती है।
दूसरा--गिरिजाकुमार कौन हैं?
पहला--वही जो बिहारी सिंह बना हुआ था।
दूसरा--वह तो अपना नाम शिवशंकर बताता है।
पहला--बताता है, मगर मैं तो उसे खूब पहचानता हूँ।
दूसरा--तो तुमने बाबाजी से कहा क्यों नहीं?
पहला--मुझे क्या गरज पड़ी है जो उसके लिए दलीपशाह से दुश्मनी पैदा करूँ? वह दलीपशाह का बहुत प्यारा शागिर्द है, खबरदार तुम भी इस बात का जिक्र किसी से न करना, मैंने तुम्हें अपना दोस्त समझ कर कह दिया है।
दूसरा--गहीं जी, मैं क्यों किसी को कहने लगा? (चौंककर) देखो, यह किसी भयानक जानवर के बोलने की आवाज है।
पहला--तो डर के मारे तुम्हारा दम क्यों निकला जाता है ? ऐसा ही है तो थोड़ी सी लकड़ी बटोर कर आग सुलगा लो या पेड़ के ऊपर चढ़कर बैठो।
दूसरा--इससे तो यही बहतर होगा कि यहाँ से चले चलें, सफर ही में रात काट