पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
202
 

ले चलकर सब-कुछ दिखाऊँगा और पता लगाऊँगा। मैं उस कम्बख्त को बिना ढूँढ़े छोड़ने वाला नहीं, मुझे आप चाणक्य की तरह जिद्दी समझिये।

दारोगा--अच्छा यह तो बताओ तुमने भूतनाथ को कहाँ देखा था जिसका जिक्र अभी तुमने किया है।

गिरिजाकुमार--बेगम के मकान से बाहर निकलते हुए।

बिहारीसिंह--(ताज्जुब से) कौन बेगम ?

गिरिजाकुमार--वही, जिसे जयपालसिंह अपनी समझते हैं । ताज्जुब क्या करते हैं, उसे आप साधारण औरत न समझिए । मैं साबित कर दूंगा कि उसका मकान भी भूतनाथ का एक अड्डा है, मगर वहाँ इत्तिफाक ही से वह कभी जाता है, हाँ बेगम उससे मिलने के लिए कभी कहीं जाती है, परन्तु उसका ठीक हाल मुझे मालूम नहीं हुआ। मैंने तो अब तक उसका भी पता लगा लिया होता, मगर क्या कहूँ, गुरुजी ने कहा कि तुम जमानिया हो आओ, वहाँ भूतनाथ जल्दी मिल जायगा, नहीं तो मैं बेगम का ही पीछा करने वाला था।

दारोगा--मुझे तुम्हारी इन बातों पर ताज्जुब मालूम पड़ता है !

गिरिजाकुमार--अभी क्या है, आगे चलकर और भी ताज्जुब होगा, जब खुद बिहारीसिंह वहाँ की कैफियत आपसे बयान करेंगे।

दारोगा--खैर, अगर तुम्हारी राय हो तो मैं बेगम को यहाँ बुलाऊँ?

गिरिजाकुमार--बुलवाइए, मगर मेरी समझ में उसे होशियार कर देना मुना-सिब न होगा, बल्कि मैं तो कहता हूँ कि इसका जिक्र अभी आप जयपालसिंह से भी न कीजिए, कुछ सबूत इकट्ठा कर लेने दीजिए।

दारोगा--खैर, जैसा तुम चाहते हो, वैसा ही होगा । बेगम को यहाँ बुलवाकर भूतनाथ का जिक्र न करूंगा, बल्कि उसकी तबीयत और नीयत का अन्दाज करूंगा।

गिरिजाकुमार--हाँ तो बुलवाइये !

दारोगा--तब तक तुम क्या करोगे ?

गिरिजाकुमार--कुछ भी नहीं, अभी तो दो-तीन दिन मैं यहाँ से न जाऊँगा, बल्कि मैं चाहता हूँ कि दो रोज मुझे आप इन्हीं (बिहारीसिंह) की सूरत में रहने दीजिए और बिहारीसिंह को कहिए कि अपनी सुरत वदल लें। जब बेगम आकर यहाँ से चली जायगी तब हम दोनों आदमी भूतनाथ की खोज में जायेंगे।

दारोगा--इसमें क्या फायदा है ? असली सूरत में अगर तुम यहाँ रहो तो क्या कोई हर्ज है ?

गिरिजाकुमार--हाँ, जरूर हर्ज है, यहाँ मैं कई ऐसे आदमियों से मिलजुल रहा हूँ जिनसे भूतनाथ की बहुत-सी बातें मालूम होने की आशा है । उन्हें अगर मेरा असल भेद मालूम हो जायगा तो बेशक हर्ज होगा। इसके अतिरिक्त जब बेगम यहाँ आ जाय तो मैं बिहारीसिंह बना हुआ आपके सामने ऐसे ढंग पर बातें करूंगा कि ताज्जुब नहीं आपको भी इस बात का पता लग जाय कि भूतनाथ से और उससे कुछ सम्बन्ध है

दारोगा--अगर ऐसी बात है तो तुम्हारा विहारीसिंह ही बने रहना ठीक है।