पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२०६

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को गिरफ्तार कर लिया, उसे रामसरन के मकान की एक अँधेरी कोठरी में ले जाकर कैद किया तथा खाने-पीने का भी प्रबन्ध कर दिया । हरनामसिंह को यह मालूम न हुआ कि उसे किसने कैद किया है और वह किस स्थान पर रखा गया है, तथा उसे खाने-पीने को कौन देता है । इस काम से छुट्टी पाकर हरनामसिंह की सूरत बन अर्जुनसिंह दारोगा के दरबार में जा घुसे और इस तरकीब से बहुत जल्द गिरिजाकुमार को पहचान लिया और उसका पता लगा लिया। गिरिजाकुमार ने जिस चालाकी से अपने को बचा लिया था, उसे जानकर उसकी बुद्धिमानी पर अर्जुनसिंह को आश्चर्य हुआ, मगर भण्डा फूटने के डर से वे अपने को बहुत ही बचाये हुए थे और दारोगा तथा असली बिहारीसिंह से सिर-दर्द का बहाना करके बातचीत कम करते थे।

"जब बिहारीसिंह को साथ लेकर गिरिजाकुमार शहर के बाहर निकला तो अर्जुनसिंह ने भी सूरत बदल कर उसका पीछा किया। जब दोनों मुसाफिर एक मंजिल रास्ता तय कर चुके तो दूसरे दिन सफर में एक जगह मौका पाकर कुछ देर के लिए गिरिजाकुमार को अकेला देख कर अर्जुनसिंह उसके पास चले गये और उन्होंने अपने को उस पर प्रकट कर दिया। जल्दी-जल्दी बातचीत करके इन्होंने उसे यह बता दिया कि उसके जमानिया चले जाने के बाद क्या हुआ तथा अब उसे क्या और किस-किस ढंग पर कार्रवाई करनी चाहिए और हमसे-तुमसे कहाँ-कहाँ किस-किस मौके पर या कैसी सूरत में मुलाकात होगी।

अर्जुनसिंह ने गिरिजाकुमार को जो कुछ समझाया उसका हाल आगे चल कर मालूम होगा। इस जगह केवल इतना ही कहना काफी है कि गिरिजाकुमार को समझा कर अर्जुनसिंह फिर जमानिया चले गए और रात के समय हरनामसिंह को बेहोश करके कैदखाने से निकाल, शहर के बाहर बहुत दूर मैदान में ले जाकर छोड़ दिया और अपना रास्ता पकड़ा, जिसमें होश में आकर वह अपने घर चला जाय और उसे मालूम न हो कि उसके साथ किसने क्या सलूक किया, बल्कि यह बात उसे स्वप्न की तरह याद रहे ।

"इसके बाद अर्जुनसिंह बहुत जल्द मेरे पास पहुंचे और जो कुछ हो चुका था उसे बयान किया। गिरिजाकुमार का हाल सुन कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई और मैंने बेगम के साथ जो कुछ सलूक किया था, उसका हाल अर्जुनसिंह से बयान किया तथा जो कुछ चीजें उसकी मेरे हाथ लगी थीं दिखाकर यह भी कहा कि बेगम अभी तक मेरे यहाँ कैद है। अतः सोचना चाहिए कि अब उसके साथ क्या कार्रवाई की जाय ?

"उन दिनों असल में मुझे तीन बातों की फिक्र लगी थी। एक तो यह कि यद्यपि भूतनाथ से और मुझसे रंज चला आता था और भूतनाथ ने अपना मरना मशहूर कर दिया था, मगर भूतनाथ की स्त्री मेरे यहाँ आई हुई थी और उसकी अवस्था पर मुझे दुःख होता था, इसलिए मैं चाहता था कि किसी तरह भूतनाथ से मुलाकात हो और मैं उसे समझा-बुझा कर ठीक रास्ते पर लाऊँ, दूसरे यह कि राजा गोपालसिंह के मरने का असली सबब दरियाफ्त करूँ और तीसरे बलभद्र सिंह तथा लक्ष्मीदेवी को दारोगा की कैद से छुड़ाऊँ, जिनका कुछ-कुछ हाल मुझे मालूम हो चुका था। बस, इन्हीं कामों के लिए हमलोगों ने इतनी मेहनत अपने सिर उठाई थी, नहीं तो जमानिया के बारे में हम लोगों के