पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२०९

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क्या सबूत है ?

गिरिजाकुमार--बहुत-कुछ सबूत है मगर इस विषय पर मैं हुज्जत या बहस करना पसन्द नहीं करता । जो कुछ असल बात है तुम स्वयं जानते हो, अपने दिल से पूछ लो।

बिहारीसिंह--मैं तो यही जानता हूँ कि राजा साहब मर गये।

गिरिजाकुमार--खैर यह तो मैं कही चुका हूँ कि इस विषय पर बहस न करूंगा।

बिहारीसिंह--मगर बताओ तो सही कि तुमने क्या समझ के ऐसा कहा?

गिरिजाकुमार-मैं कुछ भी न बताऊंगा।

बिहारीसिंह--फिर हमारी-तुम्हारी दोस्ती ही क्या ठहरी जो एक जरा सी बात छिपा रहे हो और पूछने पर भी नहीं बताते ।

गिरिजाकुमार--(हँसकर) तुम्हें ऐसा कहने का हक नहीं है । जब तुम खुद दोस्ती का खयाल न करके ये बातें छिपा रहे हो तो मैं क्यों बताऊँ ?

विहारीसिंह--(संकोच के साथ) मैं तो कुछ भी नहीं छिपाता।

गिरिजाकुमार---अच्छा मेरे सिर पर हाथ रखके कह तो दो कि वास्तव में राजा साहब मर गये, मैं अभी साबित कर देता हूँ कि तुम छिपाते हो या नहीं। अगर तुम सच कह दोगे तो मैं भी बता दूंगा कि इसमें कौन सी नई बात पैदा हो गई और क्या रंग खिला चाहता है !

बिहारीसिंह--(कुछ सोचकर) पहले तुम बताओ, फिर मैं बताऊँगा।

"इस समय बिहारासिंह नशे में मस्त था, एक तो गिरिजाकुमार ने उसे भंग पिला दी थी, दूसरे उसने जो पूरियाँ खाई थीं उसमें भी एक प्रकार का बेढब नशा मिला हुआ था, क्योंकि वास्तव में उस हलवाई के यहाँ अर्जुनसिंह ने पहले ही से प्रबंध कर लिया था और ये बातें गिरिजाकुमार से कही-बदी थीं जैसा कि ऊपर के बयान से आपको मालूम हो चुका है, अतः गिरिजाकुमार ने पहले ही से एक दवा खा ली थी जिससे उन पूरियों का असर उस पर कुछ भी न हुआ, मगर बिहारीसिंह धीरे-धीरे अलमस्त हो गया और थोड़ी ही देर में बेहोश होने वाला था। वह ऐसा मस्त और दिल खुश करने वाला नशा था जिसके वश में होकर बिहारीसिंह ने अपने दिल का भेद खोल दिया, मगर अफसोस भूतनाथ ने हमारी कुल मेहनत पर मिट्टी डाल दी और हम लोगों को बबाँद कर दिया। उस भेद का पता लग जाने पर भी हम लोग कुछ न कर सके जिसका सबब आगे चल कर आपको मालूम होगा। जब गिरिजाकुमार और बिहारीसिंह से बातें हो रही थीं उस समय हम दोनों मित्र भी वहाँ से थोड़ी ही दूर पर छिपे हुए खड़े थे और इन्तजार कर रहे थे कि बिहारीसिंह बेहोश हो जाय और गिरिजाकुमार बुलाये तो हम दोनों भी वहाँ जा पहुँचें।

"गिरिजाकुमार ने पुनः जोर देकर कहा, ऐसा नहीं हो सकता, पहले तुम्हा को दिल का परदा खोल के और सच्चा-सच्चा हाल कहके दोती का परिचर और यह बात मुझसे छिपी नहीं रह सकती कि तुमने सच कहा यः सूट क्योंकि जो कुछ भेद है उसे मैं खूब जानता हूँ।