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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२१०

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बिहारीसिंह--मुझे भी ऐसा ही मालूम होता है । खैर अब मैं कोई बात तुमसे न छिपाऊँगा, सब भेद साफ कह दूंगा। मगर इस समय मैं केवल इतना ही कहूँगा कि वास्तव में राजा साहब मरे नहीं बल्कि अभी तक जीते हैं ।

गिरिजाकुमार--इतना तो मैं खुद कह चुका हूँ, इससे ज्यादा कुछ कहो तो मुझे विश्वास हो।

"गिरिजाकुमार की बात का बिहारीसिंह कुछ जवाब दिया ही चाहता था कि सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा जो पास आते ही चाँदनी के सबब से बहुत जल्द पहचान लिया गया कि भूतनाथ है । बिहारी सिंह ने, जो भूतनाथ को देख कर घबड़ा गया था गिरिजाकुमार से कहा, "लो सम्हल जाओ, भूतनाथ आ पहुँचा !" दोनों आदमी सम्हल कर खड़े हो गये और भूतनाथ भी वहाँ पहुँच कर दिलेराना ढंग पर उन दोनों के सामने अकड़ कर खड़ा हो गया और बोला, "तुम दोनों को मैं खूब पहचानता हूँ और मुझे यकीन है कि तुम लोगों ने भी मुझे पहचान लिया होगा कि यह भूतनाथ है।"

बिहारीसिंह--बेशक मैंने तुमको पहचान लिया, मगर तुमको हम लोगों के बारे में धोखा हुआ है।

भूतनाथ--(हँसकर) मैं तो कभी धोखा खाता ही नहीं ! मुझे खूब मालूम है कि तुम दोनों बिहारीसिंह और गिरिजाकुमार हो और साथ ही इसके मुझे यह भी मालूम है कि तुम लोग मुझे गिरफ्तार करने के लिए जमानिया से बाहर निकले हो ! मुझे तुम अपने ऐसा बेवकूफ न समझो। (गिरिजाकुमार की तरफ बताकर) जिसे तुम लोगों ने आज तक नहीं पहचाना और जिसे तुम अभी तक शिवशंकर समझे हुए हो उसे मैं खूब जानता हूँ कि यह दलीपशाह का शागिर्द गिरिजाकुमार है। जरा सोचो तो सही कि तुम्हारे ऐसा बेवकूफ आदमी मुझे क्या गिरफ्तार करेगा जिसे एक लौंडे (गिरिजाकुमार) ने धोखे में डालकर उल्लू बना दिया और जो इतने दिनों तक साथ रहने पर भी गिरिजा कुमार को पहचान न सका । खैर, इसे जाने दो, पहले अपनी हिम्मत और बहादुरी का अन्दाज कर लो, देखो, मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, मुझे गिरफ्तार करो तो सही !

"भूतनाथ की बातें सुनकर बिहारीसिंह हैरान बल्कि बदहवास हो गया क्योंकि वह भूतनाथ की जीवट और उसकी ताकत को खूब जानता था और उसे विश्वास था कि इस तरह खुले मैदान भूतनाथ को गिरफ्तार करना दो-चार आदमियों का काम नहीं है। साथ ही वह यह सुनकर और भी घबड़ा गया कि हमारा साथी वास्तव में शिवशंकर या हमारा मददगार नहीं है बल्कि हमें धोखे में डालकर उल्लू बनाने और भेद ले लेने वाला एक चालाक ऐयार है। इससे मैंने जो गोपालसिंह के जीते रहने का भेद बता दिया सो अच्छा नहीं किया।

इसी घबराहट में बिहारीसिंह का नशा पूरे दर्जे पर पहुँच गया और सिर नीचा करके सोचता-ही-सोचता वह बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। उस समय गिरिजाकुमार की तरफ देख के भूतनाथ ने कहा, "तुम इस बात का खयाल छोड़ दो कि मेरे सामने से भाग जाओगे या चिल्लाकर लोगों को इकट्ठा कर लोगे।"