पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२२०

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मैं चाहूं, उसे सजा हूँ।

सुरेन्द्रसिंह--केवल दारोगा ही नहीं, बल्कि तुम्हारे और कैदी भी तुम्हारे हवाले किये जायेंगे।

गोपालसिंह--और दिलीपशाह, अर्जुनसिंह, भरतसिंह, हरदीन और गिरिजा-कुमार भी मुझे दे दिए जायें, क्योंकि ये सबलोग मेरे सहायक हैं और इनके साथ रहकर मेरा दिन बड़ी खुशी के साथ बीतेगा !

सुरेन्द्रसिंह--(जीतसिंह से) ऐसा ही किया जाये।

जीतसिंह--बहुत अच्छा, मैं नम्बरवार कैदियों के बारे में जो कुछ हुक्म होता है, लिखता जाता हूँ।

इतना कहकर जीतसिंह ने कलम-दवात और कागज ले लिया और महाराज की आज्ञानुसार इस तरह लिखने लगे--

(1) कम्बख्त दारोगा को सजा पाने के लिए राजा गोपालसिंह के हवाले किया जाये । राजा साहब जो मुनासिब समझें उसे सजा दें।

(2) शिखण्डी (दारोगा का चचेरा भाई) मायाप्रसाद, जयपाल, हरनामसिंह,बिहारीसिंह, हरनामसिंह की लड़की, लीला, मनोरमा, नागर, वेगम, नौरतन और जमालो वगैरह भी जिन्हें जमानिया से घना सम्बन्ध है, राजा गोपालसिंह के हवाले कर दिए जायें।

(3) बेगम के घर से निकली हुई दौलत, जो काशिराज ने यहाँ भिजवा दी है,बलभद्रसिंह को दे दी जाये।

(4) गौहर और गिल्सन शेरअलीखों के पास भेज दी जायें।

(5) किशोरी से पूछकर भीमसेन को छोड़ दिया जाये और उसे पुनः शिवदत्त की गद्दी पर बिठाया जाये।

(6) कुबेरसिंह, बाकरअली, अजायबसिंह, खुदाबख्श, यारअली, धरमसिंह,गोविन्दसिंह, भवगनिया, ललिता और धन्नूसिंह, तथा वे कैदी जो कमलिनी के तालाब वाले मकान से आये थे, सब जन्म-भर के लिए कैदखाने में भेज दिए जायें, इसके अतिरिक्त और जो भी कोई कैदी हों, (नानक इत्यादि) कैरखाने भेज दिए जायें।

(7) दिलीपशाह, अर्जुनसिंह, हरदीन, भरतसिंह और गिरिजाकुमार को राजा गोपालसिंह ले जायें और इन सबको बड़ी खातिर और आराम के साथ रखें। कैदियों के विषय में इस तरह का हुक्म देकर महाराज चुप हो गये और फिर आपस में दूसरे ढंग की बातें होने लगीं। थोड़ी देर के बाद दरबार बर्खास्त और सज लोग अपने-अपने ठिकाने चले गये।


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कुंअर इन्द्रजीतसिंह इस छोटे-से दरबार से उठकर महल में गये और किशोरी के