अन्दर लोग हँसते-हँसते कूद पड़ते हैं, उसके विषय में महाराज ने रात को हुक्म दिया है कि तिलिस्मी मकान के ऊपर सर्वसाधारण लोग तो चढ़ चुके और किसी को कामयाबी नहीं हुई, अब कल हमारे ऐयार लोग उस पर चढ़कर अपनी अक्ल का नमूना दिखायें और उनके लिए इनाम भी दूना कर दिया जाये, मगर इस काम में चार आदमी शरीक न किये जाएँ-एक जोतसिंहजी, दूसरे तेजसिंह, तीसरे भैरोंसिंह, चौथे तारासिंह !
भूतनाथ--बात तो बहुत अच्छी हुई, कई दिनों से मेरे दिल में गुदगुदी हो रही थी किसी तरह इस मकान के ऊपर चढ़ना चाहिए, मगर महाराज की आज्ञा बिना ऐसा कब कर सकता था। मगर यह तो कहो कि उन चारों के लिए मनाही क्यों कर दी गई?
देवीसिंह--इसलिए कि उन्हें इसका भेद मालूम है।
भूतनाथ--यों तो तुमको भी कुछ-न-कुछ भेद मालूम ही होगा, क्योंकि एक दफे तुम भी ऐसे ही मकान के अन्दर जा चुके हो, जब शेरसिंह भी तुम्हारे साथ थे।
देवीसिंह--ठीक है, मगर इससे क्या असल भेद का पता लग सकता है ? अगर ऐसा ही हो, तो इस जलसे में हजारों आदमी उस मकान के अन्दर गये होंगे, किसी को दोहराकर जाने की मनाही तो नहीं थी, कोई पुनः जाकर जरूर बाजी जीत ही लेता।
भूतनाथ--आखिर उसमें क्या है ?
देवीसिंह--सो मुझे नहीं मालूम, हाँ, दो दिन के बाद वह भी मालूम हो जायेगा।
भूतनाथ--पहली दफे जब तुम ऐसे ही मकान के अन्दर कूदे थे, तो उसमें क्या देखा था और उसमें हँसने की क्या जरूरत पड़ी थी?
देवीसिंह--अच्छा, उस समय जो कुछ हुआ था, सो मैं तुमसे बयान करता हूँ, क्योंकि अब उसका हाल कहने में कोई हर्ज नहीं है। जब मैं कमन्द लगाकर दीवार के ऊपर चढ़ गया तो ऊपर से दीवार बहुत चौड़ी मालूम हुई और इस सबब से बिना दीवार पर गये, भीतर की कोई चीज दिखाई नहीं देती थी, अतः मैं लाचार होकर दीवार पर चढ़ गया और अन्दर झाँकने लगा। अन्दर की जमीन पांच या चार हाथ नीची थी, जो किसी मकान की छत मालूम होती थी, मगर इस समय मैं अन्दाज से कह सकता हूँ कि वह वास्तव में छत न थी बल्कि कपड़े का चंदोवा तना हुआ या किसी शामियाने की छत थी, मगर उसमें से एक प्रकार की ऐसी भाप (वाष्प) निकल रही थी कि जिससे दिमाग में नशे की-सी हालत पैदा होती थी और खूब हँसने को जी चाहता था, मगर पैरों में कमजोरी मालूम होती थी और वह बढ़ती जाती थी
भूतनाथ--(बात काटकर) अच्छा, यह तो बताओ कि अन्दर झांकने से पहले ही कुछ नशा-सा चढ़ आया था या नहीं?
देवीसिंह--कब? दीवार पर चढ़ने के बाद?
भूतनाथ--हाँ, दीवार पर चढ़ने के बाद और अन्दर झाँकने के पहले।
देवीसिंह--(कुछ सोचकर) नशा तो नहीं, मगर कुछ शिथिलता जरूर मालूम हुई थी।
भूतनाथ--खैर, अच्छा तब ?
देवीसिंह--अन्दर की तरफ जो छत थी, उस पर मैंने देखा कि किशोरी हाथ में