पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
225
 

कुमार--अच्छा, तो फिर आओ, बैठ जाओ, और समझ लो कि मैं मिल गया।

कमला--(बैठकर किशोरी से) आज तुम्हें कोई आराम न करने देगा। (कुमार से) कहिए, दिलीपशाह का किस्सा तो खत्म हो गया। अब कैदियों को कब सजा दी जायेगी?

कुमार--कैदियों का फैसला हो गया, उसमें किसी को ऐसी सजा नहीं दी गई जो तुम्हारी पसन्द हो।

इतना कहकर कुमार ने पुनः सब हाल बयान किया।

कमला--तो मैं बहिन लक्ष्मीदेवी के साथ जरूर जमानिया जाऊंगी और दारोगा वगैरह की दुर्दशा अपनी आँखों से देखूगी।

थोड़ी देर तक इसी तरह की हँसी-दिल्लगी होती रही, इसके बाद लक्ष्मीदेवी और कमला अपने-अपने ठिकाने चली गई।


6

सुबह की सफेदी आसमान पर फैलना ही चाहती है और इस समय की दक्षिणी हवा जंगली पेड़ों, पौधों लताओं और पत्तों से हाथापाई करती हुई मैदान की तरफ दौड़ी जाती है ! ऐसे समय में भूतनाथ और देवीसिंह हाथ-में-हाथ दिए जंगल के किनारे-किनारे मैदान में टहलते धीरे-धीरे हँसी-दिल्लगी की बातें करते जाते हैं।

देवीसिंह--भूतनाथ, लो, इस समय एक नई और मजेदार बात तुम्हें सुनाते हैं।

भूतनाथ--वह क्या ?

देवीसिंह--फायदे की बात है, अगर तुम कोशिश करोगे तो लाख-दो-लाख रुयया मिल जाएगा।

भूतनाथ--ऐसा कौन-सा उद्योग है, जिसके करने से सहज ही इतनी बड़ी रकम हाथ लग जायेगी? और अगर इस बात को तुम जानते ही हो, तो खुद क्यों नहीं उद्योग करते?

देवीसिंह--मैं भी उद्योग करूंगा, मगर कोई जरूरी बात नहीं है कि जिसका जी चाहे उद्योग करके लाख-दो-लाख पा जाये, हाँ, जिसका भाग्य लड़ जायेगा और जिसकी अक्ल काम कर जायेगी, वह बेशक अमीर हो जायेगा। मैं जानता हूँ कि हम लोगों में तुम्हारी तबीयत बड़ी तेज है और तुम्हें बहुत दूर की सूझा करती है, इसलिए कहता हूँ कि अगर तुम उद्योग करोगे तो लाख-दो-लाख रुपया पा जाओगे। यद्यपि हम लोग सदा ही अमीर बने रहते हैं और रुपये-पैसे की कुछ परवाह नहीं करते, मगर फिर भी यह रकम थोड़ी नहीं है, और तिस पर बाजी के ढंग पर जीतना ठहरा, इसलिए प्रेसी रकम पाने की खुशी होती है।

भूतनाथ--आखिर बात क्या है, पर कुछ कहो भी तो सही।

देवीसिंह--बात यही है कि उधर जो तिलिस्मी मकान बनाया गया है, जिसके