अन्दाज पाठक स्वयं कर सकते हैं कि जब दोनों कुमार मिलने के लिए महल के अन्दर गए तो औरतों में खुशी का दरिया कितने जोश के साथ उमड़ा होगा। महल के अन्दर दोनों कुमारों का इन्तजार बनिस्बत बाहर से ज्यादा होगा, यह सोचकर ही महाराज ने दोनों कुमारों को ज्यादा देर तक बाहर रोकना मुनासिब न समझकर शीघ्र ही महल में जाने की आज्ञा दी, और दोनों कुमार भी खुशी-खुशी महल के अन्दर जाकर सबसे मिले । उनकी माँ और दादी की बढ़ती हुई खुशी का तो आज अन्दाज करना ही कठिन है, जिन्होंने लड़कों की जुदाई तथा रंज और नाउम्मीदी के साथ-ही-साथ तरह-तरह की खबरों से पहुंची हुई चोटों को अपने नाजुक कलेजों पर झेलकर और देवताओं की मिन्नतें मान-मानकर आज का दिन देखने के लिए अपनी नन्ही-सी जान को बचाकर रखा था। अगर उन्हें समय और नीति पर विशेष ध्वान न रहता तो आज घण्टों तक अपने बच्चों को कलेजे से अलग करके बातचीत करने और महल के बाहर जाने का मौका न देतीं।
दोनों कुमार खुशी-खुशी सबसे मिले। एक-एक करके सबसे कुशल-मंगल पूछा,कमलिनी और लाड़िली से भी चार आँखें हुईं, मगर वहाँ किशोरी और कामिनी की सुरत दिखाई न पड़ी, जिनके बारे में सुन चुके थे कि महल के अन्दर पहुंच चुकी हैं। इस सबब से उनके दिल को जो कुछ तकलीफ हुई उसका अन्दाज औरों को तो नहीं, मगर कुछ-कुछ कमलिनी और लाड़िली को मिल गया और उन्होंने बात-ही-बात में इस भेद को खुलवाकर कुमारों की तसल्ली करवा दी।
थोड़ी देर तक दोनों भाई महल के अन्दर रहे, और इस बीच में बाहर से कई दफे तलबी का सन्देश पहुँचा, अतः पुनः मिलने का वादा करके वहाँ से उठकर वह बाहर की तरफ रवाना हुए और उस आलीशान कमरे में पहुंचे, जिसमें कई खास-खास आदमियों और आपस वालों के साथ महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह उनका इन्तजार कर रहे थे। इस समय इस कमरे में यद्यपि राजा गोपालसिंह, नकाबपोश लोग, जीतसिंह, तेजसिंह, भूतनाथ और ऐयार लोग भी उपस्थित थे, मगर कोई आदमी ऐसा न था, जिसके सामने भेद की बातें करने में किसी तरह का संकोच हो । दोनों कुमार इशारा पाकर अपने दादा साहब के बगल में बैठ गए और धीरे-धीरे बातचीत होने लगी।
सुरेन्द्रसिंह-(दोनों कुमारों की तरफ देखकर) भैरोंसिंह और तारासिंह तुम्हारे पास गये थे, उन दोनों को कहाँ छोड़ा ?
इन्द्रजीतसिंह-(मुस्कराते हुए) जी वे दोनों तो हम लोगों के आने से पहले ही से हजूर में हाजिर हैं !
सुरेन्द्रसिंह-(ताज्जुब से चारों तरफ देखकर) कहाँ ?
महाराज के साथ-ही-साथ और लोगों ने भी ताज्जुब के साथ एक-दूसरे पर निगाह डाली।
इन्द्रजीतसिंह-(दोनों सरदार नकाबपोशों की तरफ बताकर जिनके साथ और भी कई नकाबपोश थे) रामसिंह और लक्ष्मणसिंह का काम आज वे ही दोनों पूरा कर
इतना सुनते ही दोनों नकाबपोशों ने अपने-अपने चेहरे पर से नकाबें हटा दी,