पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३२

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कलेजे में बेहिसाब तकलीफ हो रही है।

कुमार—(कमलिनी के पास से कुछ खिसककर) मुझे विश्वास था कि जन्म-भर तुमसे हँसने-बोलने का मौका मिलेगा।

कमलिनी-मेरे दिल में भी यही बात बैठी हुई थी और यही तय करके मैंने शादी की है कि आपसे कभी अलग होने की नौबत न आवे। मगर आप हट क्यों गये ? आइये-आइये, जिस जगह बैठे थे, वहीं बैठिए ।

कुमार-नहीं-नहीं, पराई स्त्री के साथ एकान्त में बैठना ही धर्म के विरुद्ध है न कि साथ सटकर, मगर आश्चर्य है कि तुम्हें इस बात का कुछ भी खयाल नहीं है ! मुझे विश्वास था कि तुमसे कभी कोई काम धर्म के विरुद्ध न हो सकेगा।

कमलिनी–मुझमें आपने कौन-सी बात धर्म-विरुद्ध पाई ?

कुमार—यही कि तुम इस तरह एकान्त में बैठकर मुझसे बातें कर रही हो इससे भी बढ़कर वह बात जो अभी तुमने अपनी जुबान से कबूल की है कि 'तुमसे कभी अलग न होऊँगी' । क्या यह धर्म-विरुद्ध नहीं है ? क्या तुम्हारा पति इस बात को जानकर भी तुम्हें पतिव्रता कहेगा?

कमलिनी-कहेगा, और जरूर कहेगा । अगर न कहे तो इसमें उसकी भूल है । उसे निश्चय है और आप सच समझिये कि कमलिनी प्राण दे देना स्वीकार करेगी, परन्तु धर्म-विरुद्ध पथ पर चलना कदापि नहीं। आपको मेरी नीयत पर ध्यान देना चाहिए । दिल्लगी की बातों पर नहीं, क्योंकि मैं ऐयार भी हूँ। यदि मेरा पति इस समय यहाँ आ जाय तो आपको मालूम हो जाय कि मुझ पर वह जरा भी शक नहीं करता और मेरा इस तरह बैठना उसे कुछ भी नहीं अखरता ।

कुमार—(कुछ सोचकर) ताज्जुब है !

कमलिनी-अभी क्या, आगे आपको और भी ताज्जुब होगा। इतना कहकर कमलिनी ने कुमार की कलाई पकड़ ली और अपनी तरफ खींचकर कहा, "पहले आप अपनी जगह पर आकर बैठ जाइये तब मुझसे बात कीजिए।"

कुमार-नहीं-नहीं कमलिनी, तुम्हें ऐसा उचित नहीं है । दुनिया में धर्म से बढ़कर और कोई वस्तु नहीं है। अतएव तुम्हें भी धर्म पर ध्यान रखना चाहिए । अब तुम स्वतन्त्र नहीं हो, पराये की स्त्री हो।

कमलिनी-यह सच है, परन्तु मैं आपसे पूछती हूँ कि यदि मेरी शादी आपके साथ होती तो क्या मैं आनन्दसिंह से हँसने-बोलने या दिल्लगी करने लायक न रहती ?

कुमार—बेशक, उस हालत में तुम आनन्द से हँस-बोल और दिल्लगी भी कर सकती थीं, क्योंकि यह बात हम लोगों में लौकिक व्यवहार के ढंग पर प्रचलित है।

कमलिनी–बस, तो मैं आपसे भी उसी तरह हँस-बोल सकती हूँ और ऐसा करने के लिए मेरे पति ने मुझे आज्ञा भी दे दी है, मैं उनका पत्र आपको दिखा सकती हूँ इसलिए कि मेरा-आपका नाता ही ऐसा है, एक नहीं बल्कि तीन-तीन नाते हैं।

इन्द्रजीतसिंह–सो कैसे ?

कमलिनी-सुनिये, मैं कहती हूँ। एक तो मैं किशोरी को अपनी बहिन समझती