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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/३३

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हूँ अतएव आप मेरे बहनोई हुए, कहिए कि हाँ ।

कुमार —— यह कोई बात नहीं है, क्योंकि अभी किशोरी की शादी मेरे साथ नहीं हुई है।

कमलिनी –– खैर, जाने दीजिये। मैं दूसरा और तीसरा नाता बताती हूँ। जिनके साथ मेरी शादी हुई है, वे राजा गोपालसिंह के भाई हैं। इसके अतिरिक्त लक्ष्मीदेवी की मैं छोटी बहिन हूं अतएव आपकी साली भी हुई।

कुमार —— (कुछ सोचकर) हां, इस बात से तो मैं कायल हुआ। मगर तुम्हारी नीयत में किसी तरह फर्क न आना चाहिए।

कमलिनी —— इससे आप बेफिक्र रहिये। मैं अपना धर्म किसी तरह नहीं बिगाड़ सकती और न दुनिया में कोई ऐसा पैदा हुआ है जो मेरी नीयत बिगाड़ सके, आइए अब तो अपने ठिकाने पर बैठ जाइए।

लाचार कुंअर इन्द्रजीतसिंह अपने ठिकाने आ बैठे और पुनः बातचीत करने लगे, मगर उदास बहुत थे और यह बात उनके चेहरे से जाहिर हो रही थी।

यकायक कमलिनी ने मसखरेपन के साथ हँस दिया जिससे कुमार को खयाल हो गया कि इसने जो कुछ कहा सब झूठ और केवल दिल्लगी के लिए था। मगर साथ ही इसके उनके दिल का खुटका साफ नहीं हुआ।

कमलिनी -- अच्छा आप यह बताइए कि तिलिस्म की कैफियत देखने के लिए राजा साहब तिलिस्म के अन्दर जायेंगे या नहीं ?

कुमार -- जरूर जायेंगे।

कमलिनी —— कब ?

कुमार —— सो मैं ठीक नहीं कह सकता, शायद कल या परसों ही जायें। कहते थे कि तिलिस्म के अन्दर चलकर उसे देखने का इरादा है। इसके जवाब में भाई गोपालसिंह ने कहा कि कि जरूर और जल्द चलकर देखना चाहिए।

कमलिनी —— तो क्या हम लोगों को साथ ले जायेंगे?

कुमार —— सो मैं कैसे कहूँ ? तुम गोपाल भाई से कहो, वह इसका बन्दोबस्त जरूर कर देंगे, मुझे तो कुछ शर्म मालूम होगी।

कमलिनी —— सो तो ठीक है, अच्छा, मैं कल उनसे कहूँगी।

कुमार ——- मगर तुम लोगों के साथ किशोरी भी अगर तिलिस्म के अन्दर जाकर वहाँ की कैफियत न देखेगी तो मुझे इस बात का रंज जरूर होगा।

कमलिनी —— बात तो वाजिब है, मगर वह इस मकान में तभी आवेगी जब उनकी शादी आपके साथ हो जायगी और इसीलिए वह अपने नाना के डेरे में भेज दी गई हैं। खैर, तो आप इस मामले को तब तक के लिए टाल दीजिए जब तक आपकी शादी न हो जाय।

कुमार —— मैं भी यही उचित समझता हूँ, अगर महाराज मान जायें तो।

कमलिनी —— या आप हम लोगों को फिर दूसरी दफे ले जायेगा।

कुमार -- हाँ, य. भी हो सकता है। अबकी दफे का वहाँ जाना महाराज की