पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/४२

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रात आधे घण्टे से कुछ ज्यादा जा चुकी थी जब सब कोई अपने जरूरी कामों से निश्चिन्त हो बंगले के अन्दर घुसे और घूमते-फिरते उसी चलती-फिरती तस्वीरों वाले कमरे में पहुंचे। इस समय बँगले के अन्दर हर एक कमरे में रोशनी बखूबी हो रही थी जिसके विषय में भूतनाथ और देवीसिंह ने ताज्जुब के साथ खयाल किया कि यह काम बेशक उन्हीं लोगों का होगा जिन्हें यहाँ पहुँचने के साथ ही हम लोगों ने पहरा देते देखा था या जो हम लोगों को देखते ही बँगले के अन्दर घुसकर गायब हो गए थे। ताज्जुब है कि महाराज को तथा और लोगों को भी उनके विषय में कुछ खयाल नहीं है और न कोई पूछता ही है कि वे कौन थे और कहां गए, मगर हमारा दिल उनका हाल जाने बिना बेचैन हो रहा है।

चलती-फिरती तस्वीरों वाले कमरे में फर्श बिछा हुआ था और गद्दी लगी हुई थी जिस पर सब कोई कायदे से अपने-अपने ठिकाने पर बैठ गए और इसके बाद इन्द्रजीत-सिंह की आज्ञानुसार रोशनी गुल कर दी गई। कमरे में बिल्कुल अन्धकार छा गया, यह नहीं मालूम होता था कि कौन क्या कर रहा है, खास करके इन्द्रजीतसिंह की तरफ लोगों का ध्यान था जो इस तमाशे को दिखाने वाले थे, मगर कोई कह नहीं सकता था कि वह क्या कर रहे हैं।

थोड़ी ही देर बाद चारों तरफ की दीवारें चमकने लगीं और उन पर की कुल तस्वीरें बहुत साफ और बनिस्वत पहले के अच्छी तरह पर दिखाई देने लगी। पहले तो वे तस्वीरें केवल चित्रकारी ही मालूम पड़ती थीं परन्तु अब सचमुच की बातें दिखाई देने लगीं। मालूम होता था कि जैसे हम बहुत दूर से सच्चे किले, पहाड़, जंगल, मैदान,आदमी, जानवर और फौज इत्यादि को देख रहे हैं। सब कोई बड़े ताज्जुब के साथ इस कैफियत को देख रहे थे कि यकायक बाजे की आवाज कान में आई। उस समय सभी का ध्यान जमानिया के किले की तस्वीर पर जा पड़ा, जिधर से बाजे की आवाज आ रही थी । देखा कि-

एक बहुत बड़े मैदान में बेहिसाब फौज खड़ी है जिसके आमने-सामने दो हिस्से हैं मानो दो फौजें लड़ने के लिए तैयार खड़ी हैं। पैदल और सवार दोनों तरह की फौजें हैं तथा तोप इत्यादि और भी जो कुछ सामान फौज में होना चाहिए, सब मौजूद है । इन दोनों फौजों में एक की पोशाक सुर्ख और दूसरे की आसमानी थी। वाजे की आवज केवल सुर्ख वर्दी वाली फौज में से आ रही थी बल्कि बाजे वाले अपना काम करते हुए साफ दिखाई दे रहे थे। यकायक सुर्ख वर्दी वाली फौज हिलती हुई दिखाई पड़ी। गौर करने पर मालूम हुआ कि सिपाहियों का मुंह घूम गया है और वे दाहिनी तरफ वाली एक पहाड़ी की तरफ तेजी के साथ बाजे की गत पर पैर रखते हुए जा रहे हैं । जैसे-जैसे फौज दूर होती जाती, वैसे ही वैसे बाजे की आवाज भी दूर होती जाती थी। देखते-ही-देखते वह फौज मानो कोसों दूर निकल गई और एक पहाड़ी के पीछे की तरफ जाकर