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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/४३

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आँखों की ओट हो गई। अब यह मैदान ज्यादा खुलासा दिखाई देने लगा। जितनी जगह दोनों फौजों से भरी थी, वह एक फौज के हिस्से में रह गई । अब दूसरी अर्थात् आसमानी वर्दी वाली फौज में से बाजे की आवाज आने लगी और सवार तथा पैदल भी चलते हुए दिखाई देने लगे। एक सवार हाथ में झंडा लिए तेजी के साथ घोड़ा दौड़ा कर मैदान में आ खड़ा हुआ और झंडे के इशारे से फौज को कवायद कराने लगा । यह

कवायद घण्टे भर तक होती रही और इस बीच में आला दर्जे की होशियारी, चालाकी,मुस्तैदी, सफाई और बहादुरी दिखाई दी जिससे सब कोई बहुत ही खुश हुए और महाराज बोले, "बेशक फौज को ऐसा ही तैयार करना चाहिए।"कवायद खतम करने के बाद बाजा बन्द हुआ और वह फौज एक तरफ को रवाना हुई, मगर थोड़ी ही दूर गई होगी कि उस लाल वर्दी वाली फौज ने यकायक पहाड़ी के पीछे से निकल कर इस फौज पर धावा मारा। इस कैफियत को देखते ही आसमानी वर्दी वाली फौज के अफसर होशियार हो गए, झंडे का इशारा पाते ही बाजा पुनःबजने लगा, और फौजी सिपाही लड़ने के लिए तैयार हो गये। इस बीच में वह फौज भी आ पहुंची और दोनों में घमासान लड़ाई होने लगी।

इस कैफियत को देखकर महाराज सुरेन्द्रसिंह, वीरेन्द्रसिंह, गोपालसिंह, जीतसिंह,तेजसिंह वगैरह तथा ऐयार लोग हैरान हो गए और हद से ज्यादा ताज्जुब करने लगे। लड़ाई के फन की ऐसी कोई बात नहीं बच गई थी जो इसमें न दिखाई पड़ी हो। कई तरह की घुसबन्दी और किलेबन्दी के साथ ही साथ घुड़सवारों की कारीगरी ने सभी को सकते में डाल दिया और सभी के मुंह से बार-बार 'वाह-वाह' की आवाज निकलती रही। यह तमाशा कई घण्टे में खत्म हुआ और इसके बाद एकदम से अन्धकार हो गया,उस समय इन्द्रजीतसिंह ने तिलिस्मी खंजर की रोशनी की और देवीसिंह ने इशारा पाकर कमरे में रोणनी कर दी जो पहले बुझा दी गई थी।

इस समय रात थोड़ी-सी बच गई थी जो सभी ने सोकर बिता दी, मगर स्वप्न में भी इसी तरह के खेल-तमाशे देखते रहे । जब सब की आँखें खुली तो दिन घण्टे भर से ज्यादा चढ़ चुका था। घबड़ा कर सब कोई उठ खड़े हुए और कमरे के बाहर निकल कर जरूरी कामों से छुट्टी पाने का बन्दोबस्त करने लगे। इस समय जिन चीजों की सभी को जरूरत पड़ी वे सब चीजें वहाँ मौजूद पाई गईं, मगर उन दोनों स्त्रियों पर किसी की निगाह न पड़ी जिन्हें यहाँ आने के साथ ही सभी ने देखा था।


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जरूरी कामों से छुट्टी पाकर ऐयारों ने रसोई बनाई, क्योंकि इस बंगले में खाने-पीने की सभी चीजें मौजूद थीं और सभी ने खुशी-खुशी भोजन किया। इसके बाद सब कोई उसी कमरे में आ बैठे जिसमें रात को चलती-फिरती तस्वीरों का तमाशा देखा