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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/५०

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इन्द्रजीतसिंह-कुछ भी नहीं ! रात-भर बराबर तमाशा देखते हुए हम लोग चले जा सकते हैं।

सुरेन्द्र सिंह-खैर, तब तो कोई हर्ज नहीं।

इन्द्रजीतसिंह ने पुतली वाले चबूतरे का दरवाजा उसी ढंग से खोला जैसे पहले खोल चुके थे और सभी को लिए हुए नीचे वाले तहखाने में पहुंचे, जिसमें बड़े-बड़े हण्डे अफियों और जवाहरात से भरे हुए रखे थे।

इस कमरे में दो दरवाजे भी थे जिनमें से एक तो खुला हुआ था और दूसरा बन्द । खुले हुए दरवाजे के बारे में दरियाफ्त करने पर कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने बयान किया कि यह रास्ता जमानिया को गया है और हम दोनों भाई तिलिस्म तोड़ते हुए इसी राह से आये हैं। यहाँ से बहुत दूर पर एक स्थान है जिसका नाम तिलिस्मी किताब में 'ब्रह्म-मण्डल' लिखा हुआ है, उस जगह से भी मुझे एक छोटी-सी किताब मिली थी जिसमें इस विचित्र बँगले का पूरा हाल लिखा हुआ था कि तिलिस्म (चुनारगढ़ वाला) तोड़ने वाले के लिए क्या-क्या जरूरी है । उस किताब को चुनारगढ़ तिलिस्म की चाबी कहें तो अनुचित न होगा। वह किताब इस समय मौजूद नहीं है क्योंकि पढ़ने के बाद वह तिलिस्म तोड़ने के काम में खर्च कर दी गई। उस स्थान (ब्रह्म-मण्डल) में बहुत-सी तस्वीरें देखने योग्य हैं और वहां की सैर करके भी आप बहुत प्रसन्न होंगे।"

सुरेन्द्र सिंह-हम जरूर उस स्थान को देखेंगे, मगर अभी नहीं । हाँ, और यह दूसरा दरवाजा जो बन्द है, कहाँ जाने के लिए है ?

इन्द्रजीतसिंह--यही चुनारगढ़ वाले तिलिस्म में जाने का रास्ता है । इस समय यही दरवाजा खोला जायगा और हम लोग इसी राह से जायंगे।

सुरेन्द्रसिंह-खैर, तो अब इसे खोलना चाहिए ।

पाठक, आपको इस सन्तति के पढ़ने से मालूम होता ही होगा कि अब यह उपन्यास समाप्ति की तरफ चला जा रहा है। हमारे लिखने के लिए अब सिर्फ दो बातें रह गई हैं, एक तो इस चुनारनगढ़ वाले तिलिस्म की कैफियत और दूसरे दुष्ट कैदियों का मुकदमा, जिसके साथ बचे-बचाये भेद भी खुल जायेंगे । हमारे पाठकों में से बहुत से ऐसे हैं जिनकी रुचि अब तिलिस्मी तमाशे की तरफ कम झुकती है परन्तु उन पाठकों की संख्या बहुत ज्यादा है जो तिलिस्म के तमाशे को पसन्द करते हैं और उसकी अवस्था विस्तार के साथ दिखाने अथवा लिखने के लिए बराबर जोर दे रहे हैं। इस उपन्यास में जो कुछ तिलिस्मी बातें लिखी गई हैं यद्यपि वे असम्भव नहीं और विज्ञान-वेत्ता अथवा साइंस जानने वाले जरूर कहेंगे कि 'हाँ ऐसी चीजें तैयार हो सकती हैं।' तथापि बहुत से अनजान आदमी ऐसे भी हैं जो इसे बिल्कुल खेल ही समझते हैं और कई इसकी देखा-देखी अपनी लिखी अनूठी किताबों में असम्भव बातें लिखकर तिलिस्म के नाम को बदनाम भी करने लग गये हैं, इसलिए हमारा ध्यान अब तिलिस्म लिखने की तरफ नहीं झुकता मगर क्या किया जाय लाचारी है, एक तो पाठकों की रुचि की तरफ ध्यान देना पड़ता है दूसरे चुनारगढ़ के चबूतरे वाले तिलिस्म की कैफियत लिखे बिना भीकाम नहीं चलता जिसे इस उपन्यास की बुनियाद ही कहना चाहिए और जिसके लिए