पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 6.djvu/४९

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यह भी नहीं हो सकता ! चम्पा जैसी नेक औरत कसम खाकर मुझसे झूठ भी नहीं बोल सकती। हाँ, उसने क्या कसम खाई थी? यही कि "मैं आपके चरणों की कसम खाकर कहती हूँ कि मुझे कुछ भी याद नहीं कि आप कव की बात कर रहे हैं।" ये ही उसके शब्द हैं, मगर यह कसम तो ठीक नहीं। यहां आने के बारे में उसने कसम नहीं खाई बल्कि अपनी याद के बारे में कसम खाई है, जिसे ठीक नहीं भी कह सकते । तो क्या उसने वास्तव में मुझे भूलभुलैये में डाल रक्खा हैं ? खैर यदि ऐसा भी हो तो मुझे रंज न होना चाहिए क्योंकि वह नेक है । यदि ऐसा किया भी होगा तो किसी अच्छे ही मतलब से किया होगा या फिर कुमारों की आज्ञा से किया होगा।'

ऐसी बातों को सोचकर देवीसिंह ने अपने क्रोध को ठण्डा किया, मगर भूतनाथ की बेचैनी दूर नहीं हुई।

वे दोनों औरतें जब आलमारी के अन्दर घुसकर गायब हो गई तब हमारे दोनों कुमार तथा महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह ने भी उसके अन्दर पैर रक्खा । दरवाजे के साथ दाहिनी तरफ एक तहखाने के अन्दर जाने का रास्ता था जिसके बारे में दरियाफ्त करने पर इन्द्रजीतसिंह ने बयान किया कि “यह जमानिया जाने का रास्ता है, तहखाने में उतर जाने के बाद एक सुरंग मिलेगी जो बराबर जमानिया तक चली गई है।" इन्द्रजीतसिंह की बात सुनकर देवीसिंह और भूतनाथ को विश्वास हो गया कि दोनों औरतें इसी तहखाने में उतर गई हैं जिससे उन्हें भागने के लिए काफी जगह मिल सकती है । भूतनाथ ने देवीसिंह की तरफ देखकर इशारे से कहा कि "इस तहखाने में चलना चाहिए।" मगर जवाब में देवीसिंह ने इशारे से ही इनकार करके अपनी लापरवाही जाहिर कर दी।

उस दीवार के अन्दर इतनी जगह न थी कि सब कोई एक साथ ही जाकर वहाँ की कैफियत देख सकते, अतएव दो-तीन दफे करके सब कोई उसके अन्दर गये और उन सब पुरजों को देखकर बहुत प्रसन्न हुए जिनके सहारे वे तस्वीरें चलती-फिरती और काम करती थीं । जब सब लोग उस कैफियत को देख चुके तब उस दीवार का दरवाजा बंद कर दिया गय।।

इस काम से छुट्टी पाकर सब लोग इन्द्रजीत सिंह की इच्छानुसार उस चबूतरे के पास आए जिस पर सुफेद पत्थर की खूबसूरत पुतली बैठी हुई थी। इन्द्रजीतसिंह ने सुरेन्द्र सिंह की तरफ देखकर कहा, "यदि आज्ञा हो तो मैं इस दरवाजे को खोलूं और आपको तिलिस्म के अन्दर ले चलू ।"

सुरेन्द्र सिंह--हम भी यही चाहते हैं कि अब तिलिस्म के अन्दर चलकर वहाँ की कैफियत देखें, मगर यह तो बताओ कि जब इस चबूतरे के अन्दर जाने के बाद हम यह तिलिस्म देखते हुए चुनारगढ़ वाले तिलिस्म की तरफ रवाना होंगे, तो वहां पहुंचने में कितनी देर लगेगी?

इन्द्रजीतसिंह--कम-से-कम बारह घण्टे । तमाशा देखने के सबब से यदि इससे ज्यादा देर हो जाय तो भी कोई ताज्जब नहीं।

सुरेन्द्र सिंह--रात हो जाने के सबब किसी तरह का हर्ज तो न होगा?